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________________ १८] [ प्रतिक्रमण - आवश्यक एक आसन लगाकर आँखों को आधी खुली रखकर सौम्य नासादृष्टि से उपयोग को (तत्वों के ज्ञेयों की ) तत्वदृष्टि (षट् द्रव्य व उनकी गुणपर्यायों) पर लगाना चाहिये । ( सामायिक काल में मौन पूर्वक शान्त चित्त से प्रमाद छोड़कर उत्साह पूर्वक “सामायिक” करना चाहिये । मनोवृत्ति की शुद्धि से चित्त शान्त होता है और उपयोग निश्चल दशा को प्राप्त होता है। शुद्धात्म स्वरूप में उपयोग की स्थिरता करना ही यथार्थ 'सामायिक' है ।) यदि सामायिक पाठ याद न हो तो इस पुस्तक में जिस क्रम से सामायिक के पाठ छपे हैं, उसके अनुसार शुद्ध उच्चारण करें । साथ में अपने दूसरे साथी हों तो उनके स्वर में स्वर मिलाकर पाठ करें, पाठ का भाव बराबर समझते रहना चाहिये । सामायिक में णमोकार मंत्र, अ अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः " आउ सा नमः अरिहंत सिद्ध, ॐ ह्रीं अर्हं अ सि आ उ सा नमः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः, मंत्र का १०८ बार जाप करें। जाप पूरे होने पर पूर्वोक्त लिखे अनुसार पुनः चारों दिशाओं में णमोकार मंत्र पूर्वक नमस्कार करें । ( सूत की जापमाला में १०८ दाने होते हैं। उनका रहस्य यह है कि गृहस्थ समरम्भ, समारम्भ, आरंभ ये तीन मन-वचन और काय से स्वयं करते हैं, कराते हैं जो क्रोध, मान, माया, लोभ के वश में होकर करते हैं, इसलिए इनके परस्पर गुणने से १०८ कर्मास्रव के भंग होते हैं। कोई भी पापकार्य उक्त प्रकार से होता रहता है जिससे अशुभ - कर्म बंधता हैं इसके रोकने का उपाय 'सामायिक' है ।) 'सामायिक' पूर्ण करने की विधि : -- सामायिक काल में मन, वचन, काय की प्रवृत्ति में ३२ दोषों
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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