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________________ १२] [प्रतिक्रमण-आवश्यक अमावस्याके दिन किया गया अध्ययन विध्नको करता है ।।१०७।। यदि साधु जन कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्याके दिन अध्ययन करते हैं तो विद्या और उपवासविधि सब विनाशवृत्तिको प्राप्त होते हैं ।।१०८॥ मध्यान्ह कालमें किया गया अध्ययन जिनरूपको नष्ट करता है, दोनों संध्याकालोमें किया गया अध्ययन ब्याधिको करता है, तथा मध्यम रात्रिमें किये गये अध्ययनसे अनुरक्त जन भी द्वेषको प्राप्त होते हैं ।।१०६॥ __अतिशय तीव्र दुखसे युक्त और रोते हुए प्राणियोंको देखने या समीपमें होनेपर मेधोंकी गर्जना व बिजलीके चमकनेपर और अतिवृष्टिके साथ उल्कापात होनेपर (अध्ययन नहीं करना चाहिये) ॥११०॥ जेठ मासकी प्रतिपदा एवं पूर्णमासीको पूर्वाण्ह कालमें वाचनाकी समाप्तिमें एक पाद अर्थात् एक वितस्ति प्रमाण (जांघोंकी) वह छाया कही गई हैं। अर्थात् इस समय पूर्वाण्ह कालमें बारह अंगुल प्रमाण छायाके रह जानेपर अध्ययन समाप्त कर देना चाहिये ।।१११।। वही समय (एक पाद) अपराण्हकालमें वाचनाकी विधिमें अर्थात् प्रारम्भ करने में कहा गया है। पूर्वाण्हकालमें वाचनाका प्रारम्भ करने और अपराहकालमें उसके छोडनेमें सात पाद (वितस्ति) प्रमाण छाया कही गई है (अर्थात् प्रातः काल जब सात पाद छाया हो जावे तब अध्ययन प्रारम्भ करे और अपराण्हमें सात पाद छाया रहजानेपर समाप्त करे)।।११२।। ज्येष्ठ मासके आगे पौष मास तक प्रत्येक मासमें दो अंगुल
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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