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________________ प्रतिक्रमण - आवश्यक ] [99 मल छोडनेकी भूमिसे सौ अरत्नि प्रमाण दूर, तनुसलिल अर्थात् मूत्रके छोबनेमें भी इस भूमिसे पचास अरनि दूर, मनुष्यशरीरके लेशमात्र अवयवके स्थानसे पचास धनुष, तथा तिर्यंचोंके शरीरसम्बन्धी अवयवके स्थानसे उससे आधी मात्र अर्थात् पच्चीस धनुष प्रमाण भूमिको शुद्ध करना चाहिये ।। ६६-१००।। व्यन्तरोंके द्वारा भेरीताडन करनेपर, उनकी पूजाका संकट होनेपर, कर्षणके होनेपर, चाण्डालबालकोंके समीपमें झाडा- बुहारी करनेपर; अग्नि, जल व रुधिरकी तीव्रता होनेपर; तथा जीवोंके मांस व हड्डियोंके निकाले जानेपर क्षेत्रकी विशुद्धि नहीं होतीं जैसा कि सर्वज्ञोंने कहा है ॥१०१-१०२॥ क्षेत्रकी शुद्धि करनेके पश्चात् अपने हाथ और पैरोंको शुद्ध करने तदनन्तर विशुद्ध मन युक्त होता हुआ प्राशुक देशमें स्थित होकर वाचनाको ग्रहण करे ॥१०३॥ बाजू और कांख आदि अपने अंगका स्पर्श न करता हुआ उचित रीतिसे अध्ययन करे और यत्नपूर्वक अध्ययन करके पश्चात् शास्त्रविधिसे वाचनाको छोड दे || १०४ || साधु पुरुषोंने बारह प्रकारके तपमें स्वाध्यायको श्रेष्ठ कहा है । इसीलिये विद्वानोंको स्वाध्याय न करनेके दिनोंको जानना चाहिये ॥१०५॥ पर्वदिनों (अष्टमी व चतुर्दशी आदि), नन्दीश्वरके श्रेष्ठ महिमा - दिवसों अर्थात् अष्टान्हिक दिनोंमें और सूर्य - चन्द्रका ग्रहण होनेपर विद्वान व्रतीको अध्ययन नहीं करना चाहिये ||१०६ || I अष्टमीमें अध्ययन गुरु और शिष्य दोनोंके वियोगको करता है पूर्णमासीके दिन किया गया अध्ययन कलह और कृष्ण चतुर्दशी और
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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