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९. ४५.
१०८].
[प्रतिक्रमण-आवश्यक सरस संवाद :
उपादान अरु निमित्तको, सरस बन्यो संवाद; ... समदृष्टिको सुगम है, मूरखको बकवाद.. ४४..
अर्थ :-उपादान अने निमित्तनो आ सुंदर संवाद बन्यो छे; सम्यग्दृष्टिने ते सहेलो छे, मूर्खने बकवादरूप लागशे. ४४. आत्माना गुणोने ओळखे ते आ स्वरूप जाणे.
जो जानै गुण ब्रह्मके, सो जानै यह भेद; . साख जिनागमसों मिले, तो मत कीज्यो खेद. ४५.
अर्थ :-आत्माना गणोने जे जाणे ते आनो मर्म जाणे; साक्षी जिनागमथी मळे छे. माटे खेद (संदेह) करवो नहि. ४५. आग्रामां संवाद रच्यो:
नगर आगरो अग्र है, जैनी जनको वास; तिहं थानक रचना करी, 'भैया' स्वमतिप्रकास. ४६.
अर्थ :-आगरा शहेर जैनी जनोना वास माटे अग्र छे. ते क्षेत्रे आ रचना (भगवतीदास) भैयाजे पोताना ज्ञान अनुसार करी छे अथवा पोताना ज्ञानना प्रकाश माटे करी छे. ४६. रचनाकाल :
संवत विक्रम भपको, सत्रहसै - पंचास; फाल्गुन पहिले पक्षमें, दशों दिशा परकाश. ४७.
अर्थ :-विक्रम राजाना संवत १७५०ना फागणना प्रथम पक्षमा दशे दिशामां आनो प्रकाश थयो. ४७.
इति उपादान—निमित्त संवाद
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