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प्रतिक्रमण-आवश्यक ] निमित्तनो पराजय :
तब निमित्त हार्यो तहां, अब नहिं जोर बसाय; - उपादान शिवलोकमें, पहुंच्यो कर्म खपाय. ४०. .
अर्थ :-त्यारे निमित्त त्यां हाणु; हवे ते कांई जोर करतुं नथी. उपादान कर्मनो क्षय करी शिवलोकमां (सिद्धपदमां) पहोंच्यु. ४०. उपादाननी जीत :
उपादान जीत्यो तहां, निजबल कर परकास; सुख अनंत ध्रुव भोगवे, अंत न बरन्यो तास. ४१.
अर्थ :-आ रीते पोताना बळनो प्रकाश करीने उपादान जीत्युं. (ते उपादान हवे) अनंत ध्रुव सुखने भोगवे छे के जेनो अंत आवतो नथी. ४१. तत्त्वस्वरूपः
उपादान अरु निमित्त ये, सब जीवनपै वीरः जो निजशक्ति संभारहीं, सो .पहुंचे भवतीर. ४२.
अर्थ :- उपादान अने निमित्त ओ बधा जीवोने होय छे, पण जे वीर छे ते निजशक्तिने संभाळी ले छे अने भवनो पार पामे छे. ४२. आत्मानो महिमा :
भैया महिमा ब्रह्मकी, कैसे वरनी जाय; वचन-अगोचर वस्तु है, कहिवो वचन बनाय. ४३.
अर्थ :- भैया (भगवतीदास) कहे छ :–ब्रह्मनो (आत्मानो) महिमा केम वर्णव्यो जाय? ते वस्तु वचनथी अगोचर छे—क्यां वचनो वडे बतावाय? ४३.