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निमित्त:
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[ प्रतिक्रमण - आवश्यक
३६.
अविनाशी घट घट बसै, सुख क्यों विलसत नांहि ? शुभ निमित्तके योग बिन, परे परे विललाहिं. अर्थ :- निमित्त कहे छे : - अविनाशी (सुख) तो घट घट ( दरेक से छे, तो जीवोने सुखनो विलास (भोगवटो) केम नथी ? शुभ निमित्तना योग वगर जीव क्षणेक्षणे दुःखी थई रह्यो छे. ३६.
(a) मां
उपादान :
शुभ निमित्त इह जीवको, मिल्यो कई भवसार;
पै इक सम्यक् दर्श बिन, भटकत फिर्यो गंवार. ३७.
अर्थ :- उपादान कहे छे :- शुभ निमित्त आ जीवने घणा भवोमां मळ्युं; पण अक सम्यग्दर्शन विना आ जीव गमारपणे ( अज्ञानभावे) भटक्या करे छे. ३७.
निमित्त:
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सम्यक् दर्श भये कहा त्वरित मुक्तिमें जाहिं; आगे ध्यान निमित्त है, ते शिवको पहुंचाहिं. ३८.
अर्थ :- निमित्त कहे छे :- - सम्यग्दर्शन थये शुं थयुं ? शुं तेथी तुरत ज मुक्तिमां जवाय छे ? आगळ पण ध्यान निमित्त छे; ते शिव (मोक्ष) पदमां पहोंचाडें छे. ३८ .
उपादान :
छोर ध्यानकी धारना, मोर योगकी रीति;
तोर कर्मके जालको, जोर लई शिवप्रीति. ३६. अर्थ :- उपादान कहे छे—ध्याननी धारणा छोडीने, योगनी रीतने समेटी लईने, कर्मनी जाळने तोडी, पुरुषार्थ वडे शिवपदनी प्राप्ति जीव करे छे. ३६.