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________________ १०६ ] निमित्त: : [ प्रतिक्रमण - आवश्यक ३६. अविनाशी घट घट बसै, सुख क्यों विलसत नांहि ? शुभ निमित्तके योग बिन, परे परे विललाहिं. अर्थ :- निमित्त कहे छे : - अविनाशी (सुख) तो घट घट ( दरेक से छे, तो जीवोने सुखनो विलास (भोगवटो) केम नथी ? शुभ निमित्तना योग वगर जीव क्षणेक्षणे दुःखी थई रह्यो छे. ३६. (a) मां उपादान : शुभ निमित्त इह जीवको, मिल्यो कई भवसार; पै इक सम्यक् दर्श बिन, भटकत फिर्यो गंवार. ३७. अर्थ :- उपादान कहे छे :- शुभ निमित्त आ जीवने घणा भवोमां मळ्युं; पण अक सम्यग्दर्शन विना आ जीव गमारपणे ( अज्ञानभावे) भटक्या करे छे. ३७. निमित्त: : सम्यक् दर्श भये कहा त्वरित मुक्तिमें जाहिं; आगे ध्यान निमित्त है, ते शिवको पहुंचाहिं. ३८. अर्थ :- निमित्त कहे छे :- - सम्यग्दर्शन थये शुं थयुं ? शुं तेथी तुरत ज मुक्तिमां जवाय छे ? आगळ पण ध्यान निमित्त छे; ते शिव (मोक्ष) पदमां पहोंचाडें छे. ३८ . उपादान : छोर ध्यानकी धारना, मोर योगकी रीति; तोर कर्मके जालको, जोर लई शिवप्रीति. ३६. अर्थ :- उपादान कहे छे—ध्याननी धारणा छोडीने, योगनी रीतने समेटी लईने, कर्मनी जाळने तोडी, पुरुषार्थ वडे शिवपदनी प्राप्ति जीव करे छे. ३६.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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