________________
प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[१०५ कोई नथी; बधा त्रण लोकना नाथ (तीर्थंकरो) पण मारी कृपाथी थाय छे. .. नोंध :-सम्यग्दर्शननी भूमिकामां ज्ञानी जीवने शुभ विकल्प आवतां तीर्थंकर-नामकर्म बंधाय छे, ते दृष्टांत रजू करी, पोतानुं बळवानपणुं 'निमित्त' आगळ धरे छे. ३२. उपादान:
उपादान कहै तू कहा, चहुं गतिमें ले जाय; . तो प्रसादतें जीव सब, दुःखी होहिं रे. भाय. ३३. ... अर्थ:-उपादान कहे छे :-तुं कोण ? तुं तो जीवने चारे गतिमा लई जाय छे. भाई! तारी कृपाथी सर्वे जीवो दुःखी ज थाय छे.
. नोंध :-निमित्ताधीन दृष्टिनुं फळ चारे गति अटले संसार छे. निमित्त पराणे जीवने चार गतिमा लई जाय छे ओम समजवू नहि. ३३. निमित्त:
कहै निमित्त जो दुःख सहै, सो तुम हमहि लगाय; . - सुखी कौनतें होत है, ताको देहु बताय. ३४...
अर्थ :-निमित्त कहे छे :—जीव दुःख सहन करे छे तेनो दोष तुं अमारा उपर लगावे छे, तो जीव सुखी शाथी थाय छे ते बतावी दे? ३४. उपादान:
जो सुखको तू सुख कहै, सो सुख तो सुख नाहिं; ये सुख, दुखके मूल हैं, सुख अविनाशी माहि. ३५.
अर्थ :-उपादान कहे छ :–जे सुखने तुं सुख कहे छे ते सुख ज नथी; जे सुख तो दुःखD मूळ छे, आत्माना अंतरमा अविनाशी ...सुख छे. ३५.