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________________ १०४] [प्रतिक्रमण-आवश्यक अर्थ -निमित्त कहे छ: मारा विना जगतमां जीव कोण मात्र? बधा मारे वश पड्या छे; मारा विना मुक्ति थती नथी? २८. उपादान : उपादान कहै रे निमित्त ! जैसे बोल न बोल; . . तोको तज निज भजत हैं, तेही करें किलोल. २६... अर्थ :-उपादान कहे छे:-अरे निमित्त! अवां वचनो न बोल. तारा उपरनी दृष्टिने तजी जे जीव पोतार्नु भजन करे छे ते ज कल्लोल (आनंद) करे छे. २६. निमित्त : कहै निमित्त हमको तजै, ते कैसे शिव जात ? पंचमहाव्रत प्रगट हैं, और हुं क्रिया विख्यात. ३०.. अर्थ :-निमित्त कहे छे :-अमने तजवाथी मोक्ष केवी रीते . जवाय? पांच महाव्रत प्रगट छ; वळी बीजी क्रिया पण विख्यात छे. (तेने लोको मोक्षनुं कारण माने छे). ३०. उपादान: पंचमहाव्रत जोगत्रय, और सकल व्यवहार; . परको निमित्त खपायके, तब पहुंचे भवपार. ३१. अर्थ :-उपादान कहे छे :—पांच महाव्रत, मन, वचन अने काय ओ त्रण तरफनुं जोडाण, वळी बधो व्यवहार अने पर निमित्तनुं लक्ष ज्यारे जीव छोडे त्यारे भवपारने पहोंची शके छे. ३१. निमित्त : कहै निमित्त जग मैं बडो, मोते बडो न कोय; तीन लोकके नाथ सब, मो प्रसाद” होय. ३२. अर्थ :-निमित्त कहे छे:-जग़मां हुं मोटो छु, माराथी मोटो ।
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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