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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[१०३ निमित्त :
उपादान तुम जोर हो, तो कयों लेत अहार; परनिमित्तके योगसों, जीवत सब संसार. २४.
अर्थ :-निमित्त कहे छे :-हे उपादान ! तारुं जो जोर छे तो तुं आहार शा माटे ले छे ? संसारना बधा जीवो पर निमित्तना योगथी जीवे छे. २४.. . उपादान:'जो अहारके जोगसों, जीवत है जग मांहिं;
तो वासी संसारके, मरते कोऊ नांहिं. २५. . · अर्थ :-उपादान कहे छे:-जो आहारना जोगथी जगतना जीवो जीवता होय तो संसारवासी कोई जीव मरत ज नहि. २५. निमित्त :र सूर सोम मणि अग्निके, निमित लखें ये नैन;
अंधकारमें कित गयो, उपादान दृग दैन. २६.
अर्थ :-निमित्त कहे छे :—सूर्य, चंद्र, मणि के अग्निनुं निमित्त होय तो आंख देखी शके छे; उपादान जो देखवानु (काम) आपतुं होय तो अंधकारमा ते कयां गयु? (अंधकारमा केम आंखेथी देखातुं नथी?) २६. उपादान :
सूर सोम मणि अग्नि जो, करें अनेक प्रकाश; नैनशक्ति बिन ना लखै, अंधकार सम भास. २७. अर्थ :-उपादान कहे छे :—जोके सूर्य, चंद्र, मणि अने अग्नि अनेक प्रकारनो प्रकाश करे छे तोपण देखवानी शक्ति विना देखाय नहीं; बधुं अंधकार जेवू भासे छे. २७.. निमित्त :--
कहै निमित्त वे जीव को मो बिन जगके मांहि? .. सबै हमारे वश परे, हम बिन मुक्ति न जाहिं. २८.