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________________ १०२] [प्रतिक्रमण-आवश्यक अर्थ :-निमित्त कहे छे :-अनादिथी निमित्त वगर ज उपयोग (ज्ञाननो व्यापार) शुं ऊलटो थई रह्यो छे? हे उपादान ! ओवी तारी वात व्याजबी संभवती नथी. २०. . उपादान : उपादान कहै रे निमित्त, हमपै कही न जाय; जैसे ही जिन केवली, देखे त्रिभुवनराय. २१. अर्थ :-उपादान कहे छ :–अरे निमित्त! माराथी कही शकाय नहि; जिन केवळी त्रिभुवनराय ओम ज देखे छे. ___ नोंध :-अहीं कहे छे के :–उपादानमां कार्य थाय त्यारे निमित्त स्वयं हाजर होय, पण उपादानने ते कांई करी शकतुं नथी अम अनंत ज्ञानीओ तेमना ज्ञानमां देखे छे. २१. निमित्त : जो देख्यो भगवानने, सो ही सांचो आहि; __ हम तुम संग अनादिके, बली कहोगे. काहि. २२. ___ अर्थ :-निमित्त कहे छ :–भगवाने जे देख्युं ते ज साचुं छे ओ खलं, पण मारो अने तारो संबंध अनादिनो छे, माटे आपणामांथी बळवान कोने कहेवो? (बन्ने सरखा छीओ ओम तो कहो). २२. उपादान:-- उपादान कहे वह बली, जाको नाश न होय; जो उपजत विनशत रहै, बली कहांतें सोय. २३. अर्थ :-उपादान कहे छे जेनो नाश न थाय ते बळवान; जे ऊपजे अने वणसे ते बळवान केवी रीते होई शके ? (न.ज होय). नोंध :-उपादान त्रिकाळी अखंड ओकरूप वस्तु पोते छे, तेथी तेनो नाश नथी. निमित्त तो संयोगरूप छे, आवे ने जाय तेथी नाशरूप छे, तेथी उपादान ज बळवान छे. २३.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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