________________
प्रतिक्रमण - आवश्यक ]
[१०१
अर्थ :-- निमित्त कहे छे :- -अ वात तो प्रसिद्ध छे के नरदेहना निमित्त विना जीव मुक्ति पामतो नथी. तेथी हे उपादान! तुं आ बाबतनो अंतरमां विचार करी जो. १६.
उपादान :
रोकै शिवपुर जात;
देह पींजरा जीवको, उपादानकी शक्तिसों, मुक्ति होत रे भ्रात ! १७. अर्थ :—उपादान निमित्तने कहे छे : अरे भाई ! देहनुं पींजरुं तो ..जीवने मोक्ष जतां रोके छे, पण उपादाननी शक्तिथी मोक्ष थाय छे. नोध :- अहीं देहनुं पींजरुं जीवने मोक्ष जतां रोके छे ओम कह्युं छे ते व्यवहारकथन छे. जीव शरीर उपर लक्ष करी, तेमां मारापणानी पक्कड करी, पोते विकारमा रोकाय छे, त्यारे शरीरनुं पींजरुं जीवने रोके छे ओम उपचारथी कहेवाय छे. १७. . निमित्त :
जीवपै, सब
उपादान
रोकनहारो
कौन;
जाते क्यों नहिं मुक्तिमें, बिन निमित्तके हौन. १८. अर्थ :- निमित्त कहे छे : -उपादान तो बधा जीवोने छे, तो
पछी तेमने रोकनार कोण छे? तेओ मुक्तिमा केम जता नथी ? निमित्त नथी मळतुं तेथी तेम थाय छे. १८.
उपादान :
उपादान सु अनादिको, उलट रह्यौ जग मांहिं;
अर्थ
सुलटत ही सूधे चले, सिद्धलोकको जाहिं. १६. :- उपादान कहे छे: - जगतमां उपादान अनादिथी ऊलटुं थई रह्युं छे सुलटुं थतां सीधुं चाले छे अर्थात् साचुं ज्ञान अने चारित्र थाय छे अने तेथी सिद्धलोकमां ते जाय छे (मोक्ष पाने छे.) १६. निमित्त:
:
कहुं अनादि बिन निमित्त ही, उलट रह्यो उपयोग; असी बात न संभवै, उपादान तुम जोग. २०.