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________________ ६८] [प्रतिक्रमण-आवश्यक अर्थ :-उपादान पोतानी शक्ति छे, ते जीवनो मूळ स्वभाव छे; अने परसंयोग निमित्त छे. तेमनो संबंध अनादिथी बनी रह्यो छे. ३. निमित्त : निमित्त कहै मोकों सबै, जानत हैं जगलोक; तेरो नाँव न जानहीं, उपादान को होय. ४. अर्थ :-निमित्त कहे छे जगतना सर्व लोको मने जाणे छे; उपादान शुं छे तेनुं नाम पण जाणता नथी. ४. उपादान : उपादान कहै रे निमित्त, तू कहा करे गुमान; मोकों जाने जीव वे, जो हैं सम्यक्वान. ५. अर्थ :-उपादान कहे छे:-अरे निमित्त ! तुं अभिमान शा माटे करे छे? जे जीव सम्यग्ज्ञानी (आत्माना साचा ज्ञानी) छे ते मने जाणे छे. ५. निमित्त : कहैं जीव सब जगतके, जो निमित्त सोई होय; उपादानकी बातको, पूछे नांहि कोय. ६. अर्थ :-निमित्त कहे छे:-जगतना सर्व जीवो कहे छ के जो निमित्त होय तो (कार्य) थाय, उपादाननी वातनुं कोई कांई पूछतुं नथी. ६. उपादान : उपादान बिन निमित्त तू, कर न सकै इक काज; कहा भयो जग ना लखै, जानत हैं जिनराज. ७.. अर्थ :-उपादान कहे छे:---अरे निमित्त ! ओक पण कार्य उपादान विना थई शकतुं नथी. जगत न जाणे तेथी शुं थयु? जिनराज ते जाणे छे.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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