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________________ [६७ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] : __ अर्थ :-वस्तु (आत्मा) परसहाय विना ज साधी शकाय छे, तेमां निमित्त केवू? (निमित्त परमां कांई करतुं नथी.) जेम पाणीना प्रवाहमां वहाण पवन विना सहज तरे छे तेम. . उपादान विधि निरवचन, है निमित्त उपदेश; . . बसै जु जैसे देशमें, धरै सु तैसे भेष. ७. अर्थ :-उपादाननी रीत निर्वचनीय छे, निमित्तथी उपदेश देवानी रीत छे. जेम जीव जे देशमां वसे ते ते देशनो वेश पहेरे छे तेम. भैया भगवतीदासजी कृत उपादान—निमित्तनो संवाद (दोहरा) पाद प्रणमि जिनदेवके, ओक उक्ति उपजाय; उपादान अरु निमित्तको, कहुं संवाद बनाय. १. अर्थ :-जिनदेवनां चरणे प्रणाम करी, ओक अपूर्व कथन तैयार करुं छु. उपादान अने निमित्तनो संवाद बनावीने ते कहुं छु. १. पूछत है कोऊ तहां, उपादान किह नाम; कहो निमित्त कहिये कहा, कबके हैं इह ठाम. २. अर्थ :-त्यां कोई पूछे छे के-उपादान कोनुं नाम ? निमित्त कोने कहीओ? अने क्यारथी तेमनो संबंध छे ते कहो. २. उत्तर : उपादान निजशक्ति है, जियको मूल स्वभाव; है निमित्त परयोगते, बन्यो अनादि बनाव. ३.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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