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________________ ६६]. [प्रतिक्रमण-आवश्यक उत्तर :--- ज्ञान नैन किरिया चरण, दोऊ शिवमग धार; - उपादान निहचै जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार. ३.. अर्थ :-सम्यग्दर्शन पूर्वकनुं ज्ञान अने ते ज्ञानमां चरणरूप (स्थिरतारूप) क्रिया ते बंने शिवमार्ग (मोक्षमार्ग)ने धारण करे छे. . ज्यां उपादान खरेखर (निश्चय) होय त्यां निमित्त होय ज छे ओ व्यवहार छे. (परवस्तुनिमित्त हाजररूप होय छे ओम परनुं ज्ञान करवू तेने व्यवहार कहेवामां आवे छे.) - उपादान निज गुण जहां, तहं निमित्त पर होय; भेदज्ञान परमाण विधि, विरला बूझै कोय. ४. अर्थ :-ज्यां पोतानो गुण उपादानरूपे तैयार होय त्यां तेने अनुकूळ पर निमित्त होय अवी रीते भेदज्ञानना प्रवीण पुरुष जाणे छे. अने तेवा कोई विरला ज बूझे छे. (मुक्त थाय छे.) उपादान बल जहँ तहाँ, नहिं निमित्तको दाव; ओक चक्रसों रथ चलै, रविको यहै स्वभाव. ५. अर्थ :-ज्यां जुओ त्यां उपादाननुं बळ छे; निमित्तनो दाव नथी, अर्थात् निमित्त कांई पण करी शकतुं नथी; जेम सूर्यनो ओवो स्वभाव छे के अक चक्रथी रथ चाले छे तेम. . सधै वस्तु असहाय जहँ, तहँ निमित्त है कौन ज्यों जहाज परवाहमें, तिरै सहज बिन पौन. ६. नोट :-(१) उपादान = वस्तुनी सहज शक्ति. (२) निमित्त = संयोगी कारण. (३) दृष्टांतमा ओक पैडुं सूर्यना रथनुं कर्तुं तेम ज हाल युरोप वगेरे देशोमां पर्वतोमा चालती रेलगाडीओ ओक ज पैडाथी चाले छे. (४) उपादान पोते पोताथी पोतामां कार्य करे छे. निमित्त हाजररूप होय छे, पण ते उपादानने कांइ मदद के असर करी शकतुं नथी अम बताव्युं छे.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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