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[प्रतिक्रमण-आवश्यक उत्तर :---
ज्ञान नैन किरिया चरण, दोऊ शिवमग धार; - उपादान निहचै जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार. ३..
अर्थ :-सम्यग्दर्शन पूर्वकनुं ज्ञान अने ते ज्ञानमां चरणरूप (स्थिरतारूप) क्रिया ते बंने शिवमार्ग (मोक्षमार्ग)ने धारण करे छे. . ज्यां उपादान खरेखर (निश्चय) होय त्यां निमित्त होय ज छे ओ व्यवहार छे. (परवस्तुनिमित्त हाजररूप होय छे ओम परनुं ज्ञान करवू तेने व्यवहार कहेवामां आवे छे.) - उपादान निज गुण जहां, तहं निमित्त पर होय;
भेदज्ञान परमाण विधि, विरला बूझै कोय. ४. अर्थ :-ज्यां पोतानो गुण उपादानरूपे तैयार होय त्यां तेने अनुकूळ पर निमित्त होय अवी रीते भेदज्ञानना प्रवीण पुरुष जाणे छे. अने तेवा कोई विरला ज बूझे छे. (मुक्त थाय छे.)
उपादान बल जहँ तहाँ, नहिं निमित्तको दाव; ओक चक्रसों रथ चलै, रविको यहै स्वभाव. ५.
अर्थ :-ज्यां जुओ त्यां उपादाननुं बळ छे; निमित्तनो दाव नथी, अर्थात् निमित्त कांई पण करी शकतुं नथी; जेम सूर्यनो ओवो स्वभाव छे के अक चक्रथी रथ चाले छे तेम. . सधै वस्तु असहाय जहँ, तहँ निमित्त है कौन
ज्यों जहाज परवाहमें, तिरै सहज बिन पौन. ६.
नोट :-(१) उपादान = वस्तुनी सहज शक्ति. (२) निमित्त = संयोगी कारण.
(३) दृष्टांतमा ओक पैडुं सूर्यना रथनुं कर्तुं तेम ज हाल युरोप वगेरे देशोमां पर्वतोमा चालती रेलगाडीओ ओक ज पैडाथी चाले छे. (४) उपादान पोते पोताथी पोतामां कार्य करे छे. निमित्त हाजररूप होय छे, पण ते उपादानने कांइ मदद के असर करी शकतुं नथी अम बताव्युं छे.