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________________ प्रतिक्रमण - आवश्यक ] समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते । नमः चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे || वि होदि अप्पमत्तो ण पमत्तो जाणगो दु जो भावो । एवं भणति सुद्धं णादो जो सो दु सो चेव ॥ भावयेद्भेदविज्ञानमिदमच्छिन्नधारया । प्रश्न : तावद्यावत्पराच्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किल अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल प्रतिष्ठते ॥ ( स्वाध्याय माटे ) उपादान — निमित्तना दोहा केचन । केचन ॥ आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम् । व्यवहारिणाम् ॥ परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं [ ६५ बलहीन; गुरु-उपदेश निमित्त बिन, उपादान ज्यों नर दूजे पांव बिन चलवेको आधीन. हौं जानै था ओक ही, उपादानसों काज; थकै सहाई पौन बिन, पानी मांहि जहाज. २. १. अर्थ :- गुरुना उपदेशना निमित्त वगर उपादान ( आत्मा पोते ) बळ वगरनुं छे, जेम माणसने चालवा माटे बीजा पग वगर चाले नहीं तेम. जे ओम ज जाणे छे के ओक उपादानथी ज काम थाय (ते बराबर नथी.) जेम पाणीमां वहाण पवननी मदद वगर थाके छे तेम
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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