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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[६६ निमित्त :
देव जिनेश्वर, गुरु यती, अरु जिन-आगम सार; इहि निमित्ततें जीव सब, पावत हैं भवपार. ८..
अर्थ :-निमित्त कहे छे:-जिनेश्वर देव, निग्रंथ गुरु अने वीतरागनां आगम उत्कृष्ट छे; ओ निमित्तो वडे बधा जीवो भवनो पार पामे छे. ८. उपादान :
यह निमित्त इस जीवको, मिल्यो अनंती बार; उपादान पलट्यो नहीं, तो भटक्यौ संसार. ६..
अर्थ :-उपादान कहे छः–ओ निमित्तो आ जीवने अनंती वार मळ्या, पण उपादान (जीव पोते) पलट्यु नहि तेथी ते संसारमा भटकयो. ६. निमित्त :
के केवलि के साधुके, निकट भव्य जो होय; सो क्षायक सम्यक् लहै, यह निमित्तबल जोय. १०.
अर्थ :-निमित्त कहे छे:-जो केवली भगवान अथवा श्रुतकेवली मुनि पासे भव्य जीव होय तो क्षायिक सम्यक्त्व प्रगटे छे ओ निमित्तनुं बळ जुओ! १०. उपादान:
केवलि अरु मुनिराजके, पास हैं बहु. लोय; पै जाको सुलट्यो धनी, क्षायक ताको होय. ११.
अर्थ :-उपादान कहे छे:- केवळी अने श्रुतकेवळी मुनिराज पासे घणा लोको रहे छे, पण जेनो धणी (आत्मा) सवळो थाय तेने ज क्षायिक (सम्यक्त्व) थाय छे. ११.