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________________ गुरुदेव कहते हैं... बाह्य अन्याय से तो अंतर के काम-क्रोध-लोभ, राग-द्वेष, मान-मद-माया जैसे घोर अन्यायों का सामना करना उचित है। यह आंतरशत्रुओं के साथ ही युद्ध करने जैसा है। जवाब दोअन्याय के विरुद्ध लड़ रहे हो या आंतरशत्रुओं के विरुद्ध? सं.२०२३ का वर्ष। प्रथम चातुर्मास मलाड़।संघ में हुई आराधनाओं की अनुमोदना हेतु संघ द्वारा आयोजितथा अष्टाह्मिका महोत्सव। बीच में आयोजन था रथयात्रा के वरघोड़े का। गुरुदेव! संघ के अग्रणियों ने आपको रथयात्रा में पधारने हेतु विनती की और हम सब आपके साथ रथयात्रा में सम्मिलित होने के लिए तैयारी करने लगे। अचानक आपकी नज़र मुझ पर पड़ी। "रत्नसुंदर, यहाँ आओ।" मैं डर गया।"जरुर मुझसे कोई गलती हुई होगी।" गुरुदेव, मैं डरते डरते आपके पास आया और आपने श्रावकों की उपस्थिति में ही मेरी जमकर धुलाई कर दी! "कमली इस तरह अप-टु-डेट ओढ़नी चाहिए? किसको दिखाना है तुम्हें? तुम्हें पता है कि दशवैकालिक सूत्र में स्त्रीसंसर्ग और वेष-विभूषा को तालपुट विष की उपमा दी गई है? तुमने जिस तरह कमली ओढी है उसका समावेश विभूषा में होता है। संयम यदि अच्छी तरह पालना है तो वस्त्र व्यवस्थित ज़रूर पहनो, पर अप-टु-डेट पहनना बंद करो।" गुरुदेव! हमारे जीवन को पतन की ओर जाने से रोकने के लिए आपने हमारे मन को तोड़ने का जो अभियान चलाया था उस अभियान ने ही हमें आज संयमजीवन में स्वस्थ, मस्त और पवित्र बनाये रखा है। १५
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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