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________________ गुरुदेव कहते हैं... "मेरे पास तत्व की समझ है ही" - यदि यही हमारी मान्यता है तो तत्व की समझ का पहला सदुपयोग यह है कि आत्मा में अज्ञानवश जो अशुभ भाव जागृत हुए हैं, उन्हें हम तत्व की समझ के सहारे रोकें और उन्हें शुभ भावों में परिवर्तित करें। परन्तु, क्या हमारा प्रयास ऐसा है ? M ज्ञानपंचमी के उपवास निमित्त आज सभी को पारने थे। अलबत्ता, उपवास के पारने एकासना करने वाले मुनिभगवंत भी थे, परन्तु अधिकतर भगवंतो को सुबह ही आहार लेना था। नवकारशी के पच्चक्खाण भी आ गये और नवकारशी की गोचरी भी आ गई। गुरुदेव, आप सहित हम सभी आहार ग्रहण करने हेतु बैठ गये, पर हुआ यूँ कि जो मुनिभगवंत सबको दूध दे रहे थे उनसे थोड़ा दूध जमीन पर गिर गया। "ध्यान रखकर दूध नहीं दे सकते ?" गुरुदेव, आपकी इस डॉट का मुनिभगवंत कोई प्रत्युत्तर दे उसकी प्रतीक्षा किए बिना ही आपने आगे बोलना जारी रखा "आप सबको यह लगता होगा कि जरा सा तो दूध गिरा है, उसमें मुझे इतना गुस्सा करने की क्या जरूरत थी ? पर यह मत भूलो कि इतने दूध में तो गरीब आदमी के घर के पाँच लोगों की चाय बन जाती। हम संयमी इतनी जागृति नहीं रखेंगे तो ऐसी जागृति की अपेक्षा किससे करेंगे ? गुरुदेव ! अत्यन्त छोटे-से प्रसंग को भी आप जिस दृष्टि से निरख सकते थे उस दृष्टि ने ही तो हमें आपके पावन नाम के आगे "संघहितचिंतक' विशेषण लगाने के लिए मजबूर किया है ना ? १७
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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