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गुरुदेव कहते हैं...
जीवन जीने में सहारा किसका लिया जाए ? वैभवसामग्री और आत्मप्रशंसा काया भाग्य को बलवान बनाने वाले धर्मतत्व का? कोई जवाब?
शाम को आज लम्बा विहार था तो सुबह का विहार भी लम्बा हीथा। गुरुदेव, आप सहित हम सभी के शरीर भारी श्रमित थे। शाम को हम सब वंदन हेतु जब आपश्री के समक्ष उपस्थित हुए तब आपश्रीने हम सब को कहा भी कि
"आज अपना विहार बहुत लम्बा हो गया है। जो भी थक गये हों और बैठे बैठे प्रतिक्रमण करना चाहते हों उनको मेरी अनुमति है..."
परन्तु,
प्रतिक्रमण शुरु हो उसके पहले गुरुदेव, आपने मुझे बुलाया, "जरा कमली ओढ़कर आना।"
मैं कमली ओढ़कर गुरुदेव, आपके पास आया और आपने भी कमली ओढी । मैं सोच में पड़ गया। "अभी कहाँ जाना होगा?" मैं कुछ बोलूँ उसके पहले आपने कहा, "देखो, आज उजाली अष्टमी है । चन्द्र का प्रकाश कहाँ मिलेगा यह हम जरा देख लें। रात को लिखने के लिए मैं सीधा वहीं पहुँच जाऊँ ना! वैसे भी, उस जगह का अभी से खयाल आ जाए तो काजा आदि लेने की विधि में भी आसानी रहेगी।"
गुरुदेव! जन्मों-जन्म आत्मा के लिए "अधिकरण" रूप बनने वाले शरीर को आपने जिस कुशलता से "उपकरण"रुप बना दिया था उसे देखने के पश्चात् कर्मसत्ता ने भी कदाचित् निर्णय कर लिया होगा कि आपको अब अशरीरी अवस्था का उपहार देना ही है।
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