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________________ गुरुदेव कहते हैं... दुष्कृत के तीव्र पश्चात्ताप में यदि दुष्कृत के बीज को जला देने की। तीव शक्ति है तो सुकृतों की जी भरकर की जाने वाली अनुमोदना में सुकत के बीज को सुरक्षित रख लेने की मंगल शक्ति है। दुष्कृत को सुरक्षित करने वाली दुबि से मुक्त हो जाना चाहते हो तथा सुकृत को जीवन्त रखने वाली सद्बुद्धि के मालिक बने रहना चाहते हो तो पश्चात्तापअनुमोदना के स्वामी बनकर ही रहो। घाटकोपर नवरोजी लेन का उपाश्रय-समय लगभग शाम के पाँच बजे का, और गुरुदेव, आपको आवश्यकता पड़ी आपके एक उपकरण की जिसका आप प्रतिदिन उपयोग करते थे। आपकी सेवा में नियुक्त मुनिवर ने वह उपकरण लाकर आपको दे तो दिया, परन्तु आपने सतर्क दृष्टि से तुरन्त परख लिया कि यह उपकरण वह नहीं है जिसका उपयोग आप प्रतिदिन करते हैं। आपने पूछा, "पुराना उपकरण कहाँ है?" "उसको दुरुस्त करने के लिए एक गृहस्थ को दिया है।" "कब दिया?" "कल शाम को।" "आज का प्रतिलेखन?" "रह गया है।" "कल मुझे उपवास है।" और गुरुदेव, हमारे लाख समझाने पर भी आप टस से मस नहीं हुए।दूसरे दिन घाटकोपर से सीधा मुलुंड की ओर विहार था, फिर भी आप उपवास करके। ही रहे। गुरुदेव! आज्ञापालन के लिए इस हद तक आपका आग्रह देखने के बाद हमें। नहीं लगता कि यह संसार आपको दीर्घ समय तक यहाँ रहने दे। ७५
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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