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________________ गुरुदेव कहते हैं... मानवजीवन योग के लिए है भोग के लिए नहीं।यह जीवन पाकर योग की साधना करे वह भाग्यशाली और भोग में ही डूबा रहे वह अभागी। मैं उन वर्षों में आपश्री की आज्ञा से गुजरात में रुक गया था और आपश्री पधारे थे दक्षिण में। इरोड़ में आपश्री की पावन निश्रा में हुई भव्य अंजनशलाका के समाचार सुनने के बाद गुरुदेव, मैंने आपश्री को पत्र में लिखा था कि "आपश्री की पावन निश्रा में हुई अभूतपूर्व अंजनशलाका के समाचार सुनकर अत्यन्त आनन्द हुआ।" मेरे इस पत्र के प्रत्युत्तर में आपने मुझे डाँटते हुए लिखा था-"तुम्हारे पास शब्दों का अच्छा खासा खजाना लगता है।"अभूतपूर्व'' शब्द लिखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?"अभूतपूर्व" शब्द का अर्थ क्या तुम्हारे ध्यान में है ? भूतकाल में कभी न हुआ हो उसे कहा जाता है "अभूतपूर्व" क्या भूतकाल में इस क्षेत्र में ऐसी अंजनशलाका कभी नहीं हुई होगी? मैंने और तुमने भूतकाल कितना देखा है? आज तक भूतकाल कितना गुजर चुका है इसका तुम्हें पता है? खैर, आज के बाद पत्र लिखने में शब्दों का प्रयोग करने से पहले विवेक का अवश्य उपयोग करना।" गुरुदेव! आपकी इस सूक्ष्मबुद्धि और शुद्धबुद्धि पर उस समय मैं फिदा हो गया था । वास्तव में आपके ज्ञानावरण के तीव्र क्षयोपशम को मोहनीय के क्षयोपशम का जबरदस्त सहारा था। इसके बिना ऐसी दीर्घदृष्टि होने की संभावना ही कहाँ होती?
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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