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________________ गुरुदेव कहते है... जैसे मृत्यु के लिए कोई अनवसर नहीं है, वैसे धर्म के लिए कोई अकाल नहीं है। मृत्यु यदि किसी भी समय आ सकती है तो मृत्यु का सामना करने वाले और मृत्यु को सुधारने वाले धर्म के लिए कोई भी अवसर उचित क्यों नहीं है? यह बात सच है कि अभी मृत्यु नहीं आई, पर कौन कह सकता है कि इसके बाद जो भी पल आने वाला है उसमें मृत्यु आयेगी ही नहीं? "आज रात एक साथ दो लाभ हुए।" रात हमने एक स्कूल में बिताई और सुबह विहार था। उस समय वंदन हेतु एकत्रित हुए तीन-चार मुनियों के समक्ष जब आपने उपरोक्त बात कही तब सहसा मैं पूछ बैठा, "कौनसे दो लाभ?" "एक लाभ यह कि पूरी रात चन्द्र का प्रकाश स्कूल के कमरे में आता रहा और इसलिए प्रभु के वचनों पर मेरा मनोचिन्तन लिखने में बहुत आनन्द आया।" "और दूसरा लाभ?" "ये बालमुनि हैं ना? खुद के संथारे से लोटते लोटते वे मेरे संथारे में आ गये। आचार्य के संथारे में सोने को मिला फिर तो पूछना ही क्या? पूरी रात मेरे संथारे में ही सोते रहे। सुबह जब उन्हें प्रतिक्रमण के लिए उठाया तभी उठे। पूरी रात मैं बैठा रहा मेरे संथारे के बाहर और ये बालमुनि सोये रहे मेरे संथारे में।बालमुनि का ऐसा लाभ मुझे मिला, यह मेरा पुण्य ही है ना? कई वर्षों के बाद एक ही रात में मुझे ये दो दो लाभ मिले होंगे!" गुरुदेव! आपके इस निर्मल वात्सल्य के अनुभव के आगे किसी भी प्रकार के खालीपन के टिकने की संभावना ही कहाँ है ? सच कहूँ, आपके ऐसे वात्सल्य के सागर में जिसको भी डूबने का सौभाग्य मिलता है, वासना, वेदना, विलाप और व्यथा उससे दूर ही रहते हैं।
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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