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________________ गुरुदेव कहते हैं.... जड़ जगत् के विषय में जितना ज्यादा जानने का प्रयास करोगे उतना ज्यादा रोना पड़ेगा और जितना ज़्यादा देखने का प्रयास करोगे उतना ज्यादा भटकना पड़ेगा। जबकि, जीव जगत् के विषय में जितना ज्यादा जानते रहोगे उतनी निर्मलता बढ़ती जायेगी और जितना ज़्यादा इस जगत् का गुणवैभव देखोगे उतनी मुक्ति निकट आयेगी। तय कर लो, आँख और मन को कहाँ रोकना है ? जड़जगत् पर या जीवजगत् पर ? ऑपरेशन थिएटर से बाहर आने को अभी दो ही घण्टे हुए थे । गुरुदेव, आप के गले के भीतरी हिस्से में बढ़ रहे फोड़े का अभीअभी ऑपरेशन हुआ है। आप पूर्णरूप से होश में हैं। ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर आपके समीप ही खड़े हैं। उन्होंने आप से जोर देकर एक अनुरोध किया है कि- "अभी चार घण्टे तक आप एक भी शब्द नहीं बोलेंगे। जो भी कहना हो वह इशारों में ही कहेंगे ।" "साहबजी भोजन में क्या ले सकते हैं ?" "चाय दी जा सकती है। " इतना कहकर डॉक्टर तो चले गये, पर गुरुदेव, दोपहर के एक बजे आपकी सेवा में उपस्थित मुनिवर ने जब आपसे पूछा कि "चाय ले आऊँ ?" तब डॉक्टर की मौन रहने की सलाह के बावजूद आपने जो जवाब दिया था उसे सुनने का सद्भाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था । "अभी दोपहर को एक बजे निर्दोष चाय तो किसी के घर नहीं मिलेगी। तीन बजे कहीं जाकर आना, कदाचित् उस समय कहीं निर्दोष चाय मिल जाए ।" गुरुदेव ! शास्त्रपंक्तियों को आपने केवल कंठस्थ ही नहीं किया था, बल्कि जीवनस्थ भी किया था। इसके बग़ैर ऐसी अस्वस्थता में भी निर्दोष चाय का आग्रह रखने की सद्बुद्धि कैसे सुझती ? ६१
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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