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________________ गुरुदेव कहते हैं... आज धर्म करने से और पाप छोड़ने से इन्कार करने वाले मन से इतना ही पूछ लो कि धर्म यदि आज नहीं करोगे तो कब करोगे? और, पाप यदि आज नहीं छोड़ोगे तो कब छोड़ोगे? "मेरे आसन पर पड़े अखबार को किसने हाथ लगाया? बुलाओ सब साधुओं को यहाँ मेरे पास।" जलगाँव के चातुर्मास के दौरान एक दिन प्रवचन समाप्ति के पश्चात् आपको ऐसा लगा कि आपकी अनुपस्थिति में किसी ने अवश्य अखबार पढ़ा है। आपक्रोधित हो उठे और पलभर में तो हम सभी साधु आपके समक्ष उपस्थित हो गये। "अखबार को किसने हाथ लगाया?" यह बोलते वक्त आपका उग्र चेहरा देखकर हम सब काँप उठे थे, पर सबसे ज्यादा विषम स्थिति मेरी थी, क्योंकि अखबार पढ़ने का गुनाह मैंने ही किया था। "गुरुदेव, मैं गुनहगार हूँ।" "मेरी अनुपस्थिति में मेरे आसन को लाइब्रेरी बनाया ? तुम्हें अखबार पढ़ने की इजाजत किसने दी? क्या पढ़ना है अखबार में? स्वाध्याय में डूब जाने की उम्र में अखबार पढ़ते हो? खबरदार, आज के बाद कभी अखबार को हाथ लगाया तो! संयमजीवन खत्म हो जायेगा।" गुरुदेव! ११वर्ष के संयमजीवन के पर्याय के बाद भी मुझे अखबार के वाचन से दूर रखकर वास्तव में आपश्री ने मेरे भावप्राणों को सुरक्षित कर दिया था। आपके इस उपकार का वर्णन करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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