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பலன் கதவ
गुरुदेव कहते हैं... इसी जनम में ४० वषों में प्रतिदिन की ४-४ रोटियों के हिसाब से लगभग ५६,००० रोटियाँ तो हम खा चुके और प्रतिदिन के ४ लीटर पानी के हिसाब से ५६,००० लीटर पानी हम पी चुके, फिर भी खानपान की भूख नहीं मिटी। ऐसी राक्षसी भूख को इस जनम में, पवित्र आत्महित की साधना में प्रधानता कभी मत दो।
"यह तो छोटा-सा गाँव है। यहाँ पक्का नमक मिलाही कैसे?" गुरुदेव, आपका शरीर १०४ डिग्री बुखार की घोषणा कर रहा था। वर्धमान तपकी १०८ वी ओली प्रारंभ किए अभी चार ही दिन हुए थे। मुंबई की ओर हमारी विहारयात्रा प्रारंभ हो चुकी थी। आप आयंबिल करने बैठे थे और फीकी दाल में नमक डालने के लिए आपके सामने नमक रखा तो सही, पर आपके इस प्रश्न से हम सब निरुत्तर एक-दूसरे का मुँह देखने लगे थे। आप समझ गये। हमारे प्रत्युत्तर का इन्तजार किये बिना आपने इतना ही कहा
"यहाँ श्रावक का कोई घर नहीं है। मेरी आयंबिल की गोचरी आप अन्य घरों में जाकर ले आये हो। मुझे लगता है कि निकट के शहर से जरूर कोई श्रावक गोचरी लाये हैं और उसमें से ही यह पक्का नमक तुमने ग्रहण किया है।
सभी के चेहरे यह कहते हैं कि मैं सच बोल रहा हूँ।एक काम करो-या तो यह नमक आप में से कोई एक उपयोग में ले लो या उसके परठने की विधि कर लो, मेरे पेट में तो यह नमक कतई नहीं जायेगा।"
गुरुदेव! आपकी पापभीरूता-प्रमावभीरुता-भवभीरता-आज्ञाभंगभीरुता और अशुभकर्मबंधभीरुता आज हमारे स्वप्न का विषय भी नहीं बन पाई। क्या यह हमारी भारीकर्मिता ही है?