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गुरुदेव कहते हैं... शरीर और मन की मुलायमता-सुकुमारता, आत्मा में कायरता तथा निःसत्वता पैदा करती है और इसीलिए उससे आत्मा को बचाने के लिए शरीर को तप-त्याग में एवं मन को शुभविचारों में जोड़ते जाओ।
"कौन?" "मैंरत्नसुंदर।" "कितने बजे होंगे अभी?"
"लगभग चार।" उपाश्रय की छत के नीचे गुरुदेव, आप बैठे हैं। कड़ाके की ठण्ड है। आपके पूरे शरीर पर कमली लिपटी हुई है। केवल दो हाथ कमली के बाहर हैं। एक हाथ में पुष्टे पर रखे पन्ने हैं और दूसरे हाथ में पेन है।
मैं आपके निकट आया। "गुरुदेव,नीचे पधारिए।"
"आना तो पड़ेगा ही!" "यहाँ आप कब पधारे गुरुदेव ?" "रात के १० बजे से बैठा हूँ।" "अविरत छ: घण्टे?"
"हाँ।"
"कमाल करते हैं गुरुदेव!" "रत्नसुंदर, कमाल तो प्रभुवचनों का है। उन पर लिखने के लिए जब कलम उठती है तब वह कहीं थमने का नाम ही नहीं लेती।तुमने अब तक इसका स्वाद नहीं चखा, इसलिए तुम्हें ज्यादा तो क्या कहूँ ? पर, एक बार तुम इसे चखकर देखो तो फिर तुम्हें भी मुझ जैसा ही नशा आ जायेगा।"
गुरुदेव! शरीर नाम के उपकरण का आपने जिस हद तक सदुपयोग कर लिया, उस हद तक सदुपयोग आज के काल में किसने किया होगा यह प्रश्न है। हम सबके लिए आप आलंबन भी हैं और आदर्श भी हैं।