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"स्वाध्याय हो गया?"
गुरुदेव कहते हैं...
सुख बाहावस्तु का धर्म नहीं है, वह तो आत्मा की चीज़ है। परन्तु, उसकी अनुभूति तभी होती है जब हृदय में कोई चिन्ता न हो, मन में कोई भय न हो, अंतर में कोई संताप न हो, कोई आकुलतान हो।मनजदय-अंतर निश्चिन्त, निर्भय, शान्त और आत्मा आनंदित हो तो ही सुख का-सच्चे सुख का अनुभव हो सकता है। ऐसा सुख प्रदान करने की शक्ति केवल धर्म में ही है।
"पूरा स्वाध्याय?" ''केवल पन्द्रह मिनट का स्वाध्याय ही शेष रहा है, वह हम कल कर लेंगे।"
"पर अभी ही कर लो तो?" "रात के पौने बारह बज चुके हैं और हम सबको गहरी नींद आ रही है। वैसे भी प्रतिदिन तो हम बारह बजे तक स्वाध्याय करते ही हैं। सभी को "कम्मपयड़ी'' का पाठ अच्छी तरह आता है, कल हम पूरा स्वाध्याय कर लेंगे।"
अहमदाबाद-ज्ञानमंदिर की गैलरी में बैठे-बैठे आपचन्द्र के प्रकाश में दिव्यदर्शन साप्ताहिक का विवरण लिख रहे थे और हम सभी को स्वाध्याय समाप्त करके आसन की ओर जाते देखकर आपने हमें रोककर यह प्रश्न पूछा था।
"देखो, शरीर है इसलिए नींद तो आयेगी ही। एक काम करो। तुम सभी २५-२५खमासमने दे दो, नींद उड़ जायेगी।"
हम सभी बिना खमासमने दिये सीधे स्वाध्याय करने बैठ गये। हमें यह सौदा ज्यादा सस्ता (?) लगा!
गुरुदेव! आपश्री हमें बार बार कहते थे कि-"गधे के पास काम करवाने के लिए कुम्हार गधे के "मूड" को नहीं देखता। साधना मार्ग में शरीर का कस निकालना हो तो उसके 'मूड' की बहुत चिन्ता मत करो।
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