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________________ गुरुदेव कहते हैं... कामपुरुषार्थ तो पशुगति में भी सुलभ है। अर्थपुरुषार्थ । तो अधर्मी को भी सुलभ है। परंतु, दुर्लभतम पुरुषार्थ यदि कोई है तो वह है धर्मपुरुषार्थ । उत्तम जीवन को सफल बनाना हो तो इस पुरुषार्थ को अपना लीजिए। बोटाद शहर में रात को केवल पुरुषों की सभा के समक्ष उस प्रवचन में गुरुदेव, धन्ना अणगार की सज्झाय सुनाते सुनाते आप कैसे आनन्दित हो गये थे यह तो आपको भी याद होगा और उसमें भी धन्ना द्वारा प्रभु वीर से माँगे गए अभिग्रह को वर्णित करने वाली यह पंक्ति, "छट्टतप आयंबिल पारणे, करवो जावज्जीव'' बोलते बोलते आप अत्यन्त गद्गद् हो गये थे, यह खुद मैंने देखा था। दूसरे दिन मैंगोचरी में आपके पात्र में मिठाई का टुकड़ा रखने आया और आपने मुस्कराते हुए इन्कार कर दिया। "पर क्यों?" "बस, ऐसे ही।" "नहीं, आपको यह ग्रहण करनी ही होगी।" और गुरुदेव, उस समय आपका उत्तर मुझे आज भी अच्छी तरह याद है । "कल धन्ना की सज्झाय बोलतेबोलते मुझे अपने आपपर घृणा हो आई । धन्ना यदि जीवनभर के लिए बेले के पारणे आयंबिल कर सकता है तो मैंजीवनभर के लिए मिठाई त्याग भी नहीं कर सकता? बस, उसी समय प्रवचन के पाट पर ही मैंने जीवनभर के लिए मिठाई त्याग की प्रतिज्ञा ले ली।" गुरुदेव! अणाहारी पद पाने की आपकी इस तड़पन को समझने की जरा सी भी बुद्धि मुझ में यदि होती तो मुझे लगता है कि तप-त्याग के मामले में आज मेरी यह दरिद्रता नहीं होती।
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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