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________________ गुरुदेव कहते हैं... आग, सॉप और बाघ के साथ खेलते रहने के बावजूद भी जीवन को सलामत रखना संभव है,पर कुनिमित्तों के बीच रहकर सदगुणों को सुरक्षित रखने में सफलता मिलना सर्वथा असंभव हा सद्गुणों को सलामत रखना है ? कुनिमित्तों से तत्काल दूर हो जाइए। अहमदाबाद के ज्ञानमंदिर में चातुर्मास करने का निर्णय लगभग हो चुका था। सिर्फ घोषणा करनी बाकी थी। अन्य स्थानों पर भी चातुर्मास के लिए मुनियों को भेजनाथा । किसे कहाँ भेजना है इस चिन्ता में गुरुदेव, आप व्यस्त थे और तभी मैंने आपसे पूछा था "पूज्यपाद पंन्यासजी श्री हेमंतविजयजी महाराज चातुर्मास में हमारे साथ रहने वाले हैं?" "नहीं।" आपका यह जवाब सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य इसलिए हुआ कि मुझे पक्के समाचार मिले थे कि पूज्य पंन्यास श्री हेमन्तविजयजी महाराज ज्ञानमंदिर में हमारे ही साथ चातुर्मास करने वाले हैं। मेरे चेहरे की उलझन देखते ही गुरुदेव, आपने मुझे कहा था "देखो रत्नसुंदर, पू.पं श्री हेमन्तविजयजी महाराज मुझसे बड़े हैं। वे हमारे साथ चातुर्मास नहीं करने वाले, बल्कि हम उनके साथ चातुर्मास करने वाले हैं।आखिर तुम विनयधर्म की महत्ता समझते हो कि नहीं?" गुरुदेव! आज समझ में आता है कि आप सभी के लिए इतने "मधुर" क्यों थे? आपके जीवनदूध में विनय की मिठास सदा और सर्वत्र मौजूद होती ही थी। आपको दूर रखना किसे अच्छा लगेगा?
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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