________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
एक दीपकका प्रकाश पूरे कमरे में फैला रहता है. यदि उसमें क्रमशः सौ दीपक और लगा दिये जायँ तो भी उनके प्रकाशोंमें परस्पर संघर्ष नहीं होगा. प्रकाशसे प्रकाश का मिलन होता रहेगा. ठीक उसी प्रकार मोक्षमें पहुँचनेवाली मुक्तात्माएँ पहले से उपस्थित मुक्तात्माओंकी अनन्त ज्योतिमें विलीन होती रहती है. स्थान पाने के लिए उनमें कोई संघर्ष नहीं होता. संशय मिटते ही प्रभासजीने भी आत्मसमर्पण कर दिया, अपने तीनसौ छात्रों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की और प्रभुसे त्रिपदी का ज्ञान प्राप्त कर द्वादशांगी की रचना की. प्रभुने ग्यारहवें गणधर के रूपमें उन्हें प्रतिष्ठित किया. इस 'गणधरवाद" के फलस्वरूप चरमतीर्थंकर प्रभु महावीरको एक ही दिनमें कुल ४४११ (चार हचार चार सौ ग्यारह) शिष्यरत्नोंकह सम्पदा प्राप्त हई. प्रभुके चरणोंमें कोटिशः वन्दन ।
समाप्त
धोखा 'दगा किसी का सगा नहीं यह कहावत प्रायः सही है जो व्यक्ति दूसरों को धोखा देता हैं, वह स्वयं भी धोखे में फंस कर अपना अहित कर लेता है एक व्यक्तिने 'सर्पदंश' के इन्जेक्शन निकाले. १६ रुपया कीमत रखी फिर भी काफी चले... लोगों को उससे फायदा हुआ... एक व्यक्तिने उसी मार्के पर नकली इन्जेक्शन निकाले, आठ रुपये में बेचना शुरू किया. अब पहलेवाले का कारोबार बन्द पड़ गया. एक दिन नकली इन्जेक्शन बनाने वाले के लड़के को सापने काट लिया. अब असली इन्जेक्शन कहीं मिला नहीं, अत: नकली इन्जेक्शन लगाया पर लड़का नहीं बचा, तब वह सिर पीटकर रोने लगा-'हाय, हाय । मेरा पाप मुझे ही खा गया |||
७८
For Private And Personal Use Only