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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (eu प्रभुः- सौम्य । पुण्यका फल सुखाभास है, सुख नहीं. जिसे लोग सुख कहते हैं, वह व्याधिप्रतीकार मात्र है., इसलिए क्षणिक है. खुजलीको खुजलाने से जिस सुखका आभास होता है, वैसा ही संसारका समस्त सुख समझो. खुजलाने से खाज बढती ही है., इसलिए जिससे दुःख बढे, उसे सुख नहीं कह सकते. निर्वाण अवस्थामें सुखका आभास देनेवाला पुण्य नहीं होता, किन्तु सहज आभास स्वाभाविक परिपूर्ण और स्थायी सुख होता है.. इसलिए मानना चाहिये कि परम सुख की अनुभूति करानेवाला निर्वाण है. प्रभुकी वाणी सुनकर प्रभासजीका संशय मिट गया. मोक्षके विषयमें एक शंका आपको भी हो सकती है कि काल अनादिअनन्त है., इसलिए अनन्तानन्तकाल बीत चुका है. उसमें अनन्त जीव मोक्ष गये होंगे ऐसी अवस्थामें मोक्ष भर जनाा चाहिये और संसार खाली हो जाना चाहिये., परन्तु संसार ज़्यों का त्यों आबाद है. यह संसार जीवोसे खाली क्यों नहीं हुआ ? इसका रहस्य भी जैसा मैंने गुरुदेव से सुना है, आपके सामने प्रकट कर देता हूँ. जब-जब जिनेश्वर भगवान से पूछा जाता है कि कितने जीव मोक्ष गये, तब तबा सबसे एक ही उत्तर मिलता है- "निगोदका भी अनन्तवाँ भाग ही अबतक मोक्ष गया है ।'' (इक्कस्स निगोदरस वि, अनन्तभागो य सिद्धिगओ ।।) आप जानते ही है कि पहाड़ की चट्टानें बरसात के जलसे घिसकर रेत बन जाती है. बनी हुई वह लाखों टन रेत नदियों में आनेवाली बाढों में बह-बह कर हजारों वर्षों से समुद्र में मिलती रही है, फिर भी क्या कभी आपने यह देखा कि अमुक पर्वतका शिखर घिसकर गायब हो गया अथवा आठ-दस फुट कम हो गया ? क्या कभी आपने यह देखा कि समुद्र रेतसे भर गया है एवं उसमें और अधिक रेत के लिए जराभी रिक्तस्थान नहीं रह गया है ? ठीक वैसे ही पर्वत की तरह संसार जीवोंसे खाली होता नहीं है और समुद्र की तरह मुक्तजीवोसे मोक्ष भरता नहीं है. ७७ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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