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ओर ध्यान देता है ? अधिकांश लोग देवलोक पानेके लिए ही जीवन-भर । शास्त्रविहित पुण्यकार्य करते रहते हैं. शाश्वत सुख देने वाले मोक्षके लिए बहुत कम लोग जो देवलोक की अनित्यताको जानते हैं, वे ही लोग प्रयास करते है. हे मौर्यपुत्र । देवलोककी प्राप्ति किन-किन कार्यों से होती है ? इसका विस्तृत विधान वेदों में पाया जाता है. सो वह भी देवलोक के अस्तित्व का एक प्रमाण है. संसार में सर्वथा सुखी कोई नहीं है, सुख भी है दुःख भी है. सुख पुण्यका फल है और दुःख पापका. केवल पापका फल भोगने के लिए जैसे नरक है, वैसे ही केवल पुण्यका फल भोगने के लिए भी कोई स्थान होना चाहिये. वही स्वर्ग है. मौर्यपुत्र :- "प्रभो । देव स्वेच्छाविहारी होते हैं, फिर भी यहाँ प्राय : नहीं आते (बहुत कम आते हैं) ऐसा क्यों ?' महावीर स्वामी :- "हे मौर्यपुत्र । यहाँ बार-बार न आने के अनेक कारण है. मुख्य ये हैं : (१) यहाँ आनेका कोई खास प्रयोजन बार-बार नहीं आता (२) स्वर्ग की तुलनामें मर्त्यलोक उन्हें नहीं सुहाता - यह दुःख और दुर्गन्धसे भरा हुआ लगता है. मौर्यपुत्र :- "हे प्रभो । वे कौन से कारण हैं, जिनसे देव यहाँ आते है ?" महावीर प्रभु :- "हे वत्स । देवों के आनेके कुछ कारण ये हैं :१. तीर्थंकर देवों का जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण आदि महोत्सव मनाने के लिए। २. समवसरण की रचना के लिए । ३. केवल ज्ञानियों से पूछ कर अपना संशय मिटाने के लिए ४. ममताके कारण पूर्वभवके रिश्तेदारों से मिलने के लिए। ५. किसीको दिये हुए वचनकी पूर्ति के लिए। ६. विशिष्ट तपोऽनुष्ठान, मन्त्र आदि के अधीन होनेके कारण भक्तों से मिलनेके लिए। ७. कीडा - कौतुक के लिए।
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