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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुभकर्मों के उदय से अनुकूलताएँ ही प्राप्त नहीं होती : बल्कि बिल्कुल उलटा भी सुलट जाता है - औंधा भी सीधा हो जाता है. एक उदाहरण देखिये. किसी अनुभवीसे यह सुनकर कि आपका पुण्योदय प्रारंभ हो गया है, एक आदमीने सीधे राजाके निकट जाकर उनके गाल पर एक तमाचा मार दिया. राजाका मुकुट तत्काल ज़मीन पर गिर गया. अंगरक्षकने सिपाहियों को आदेश दिया कि हथकड़ी-बेड़ी डाल कर इस दुष्ट को कैद कर लिया जाय क्योंकि महाराजको इसने जो अपमानित करने का अपराध किया है, वह अक्षम्य है - दण्डनीय है. परन्तु उसी समय राजाने कहा : "इसे एक लाख रूपयेका पुरस्कार देकर सन्मान के साथ बिदा किया जाय : क्योंकि तमाचा लगाकर इसने आज मेरी जान बचाई है. शामके समय मालीने फूलोंका गुलदस्ता भेंट किया था, उसमें साँप का एक बच्चा प्रविष्ट हो गया था. मैंने वह गुलदस्ता अपने मुकुट पर (मस्तक पर) रख लिया था. तमाचा लगने पर ज्यों ही मुकुट नीचे गिरा कि उसमेंसे साँपका वह बच्चा बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया, यदि इस आदमीने तमाचा मार कर मुकुट न गिराया होता तो साँप के बच्चे के दंश से मेरे प्राण निकल जाते : इसलिए यह दण्ड का नहीं, पुरस्कार का पात्र है.'. एक लाख रूपयों का पुरस्कार प्राप्त कर वह आदमी प्रसन्नता-पूर्वक अपने घर लौट आया. सूर्यका जब उदय होता है तो लोग उसे नमस्कार करते हैं, परन्तु जब वह अस्त होने लगता है, तब कोई उसकी ओर झाँक कर भी नहीं देखता - न कोई जाननेकी कोशिश करता है कि उसके क्या हालचाल है । उसी प्रकार जब शुभकर्मों का उदय होता है - पुण्य का रनिंग पीरियड चल रहा होता है, तब सब लोग नमस्कार करते हैं - सन्मान करते हैं, परन्तु जब अशुभ कर्मों का उदय प्रारंभ होता है - पुण्यराशि समाप्त हो जाती है, तब कोई नहीं पूछता, मित्र भी सामने से आ रहा हो तो वह मुँह छिपाकर गलीमें से निकल जायगा - इस डरसे कि मिलने पर अपनी मुसीबतों का रोना रोकर यह कुछ माँग न बैठे. SEN For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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