________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(BD कहते है :
त्रिभिर्वर्षस्त्रिभिर्मासै
स्त्रिभिः पक्षस्त्रिभिर्दिनैः । अत्युग्रपुण्यपापाना
मिहैव लभ्यते फलम् ॥ तीन वर्षों में, तीन महीनों में, तीन पखवाडो में अथवा तीन दिनों में अत्यन्त उग्र पुण्य-पाप का यहीं फल मिल जाता है) कुछ वर्ष पहले जब मैं राजस्थानमें था, उस समयकी यह घटना है. मद्रास से एक श्रावक पेटी-बिस्तर लेकर अपने माँ-बापसे मिलनेके लिए राजस्थान आया. जिस गाँवमें वह रहता था, वह स्टेशनसे तीन । किलोमीटरकी दूरी पर था. जिस स्टेशन पर उसे उतरना था, वह भी बहुत छोटा था. जब ट्रेन उस स्टेशन पर पहुँची, उस समय रात के बारह बज रहे थे. अमावस्याकी काली रात में तीन किलोमीटर पैदल चलकर अपने जन्मस्थल वाले गाँवमें पहुँचना खतरे से खाली नहीं था. उसने स्टेशनमास्टरके सामने अपनी समस्या रखते हुए कहाः- "सर । मेरे पास जोखिम है. मेरी पेटी क्लाकरूम में रखा दी जाय तो मैं अपना बिस्तर खोलकर वेटिंगरूममें बेफिकीसे सो सकूँगा." स्टेशन मास्टरने कहाः 'देखते नहीं ? यह छोटा स्टेशन है. क्लाकरूम तो बड़े स्टेशनों पर ही होते हैं. यहाँ तो वेटिंगरूम से ही काम चलाना पडेगा मेरा खयाल है, आप इस रूममें भी बेफिकीसे सो सकते है, क्योंकि सुबह तक दूसरी कोई ट्रेन आनेवाली नहीं है, इसलिए दूसरा कोई मुसाफिर आपको डिस्टर्ब करनेवाला नहीं है. आप पेटी अपने तकियेके पास रखकर आराम कीजिये." श्रावक रूममें अकेला था. बेडिंग खोलकर उस पर लेट गया. पेटी अपने पास ही रखली. उधर "मेरे पास जोखिम है" इस वाक्यने स्टेशन मास्टरके दिलमें खलबली पैदा कर दी. उसने सोचा कि पेटी में बीस पच्चीस हजारकी गड्डियाँ तो होंगी ही या फिर सोने के जेवर होंगे। यदि यह पेटी किसी तरहसे मेरे कब्जेमें आ जाय तो मुझे सर्विस करनेकी जरूरत ही न रहे. जैसे यह सेट मद्राससे धन कमाकर अपने गाँव जा रहे है, ऐसे ही मैं भी
५४
For Private And Personal Use Only