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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नगर से बाहर निकला. उधर सेनापतिने अपने कुछ सैनिकोंको गिनतीके लिए तैनात कर दिया था. जब संख्या नौ हजार तक पहुँच गई तब राजा को उसने सूचित कर दिया कि अपने को गुप्तचरोंसे तीन हजार सैनिकों की जो सूचना मिली थी, सो गलत थी क्योंकि नौ हजार की तो गिनती हो चुकी है इनके अतिरिक्त और भी सैनिक हो सकते हैं, अतः युद्ध में पराजय निश्चित है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह सुनकर शत्रुराजा बिना युद्ध किये ही भाग गया. नगरपर आया संकट टल गया. वैद्यराजका भारी सन्मान किया गया. शुभ कर्मों का उदय होने पर सर्वत्र इसी प्रकार अनुकूलताएँ प्राप्त होती है. भय भाग जाता है अज्ञानी मनुष्य ज्ञानी की संगति में जाने से भय खाता है, भोगी वैरागियों की संगति करने से कतराता है, उसके मन में अनेक संशय और भय छाये रहते है कि पता नही वहां क्या होगा ? संसार ही छूट जायेगा या खाना-पीना ही छुडवायेंगे पर जो एक बार चला जाता है, और उनका वरदान स्वरूप आशीर्वाद प्राप्तकर लेता है, उसका भय कोसों दूर भाग जाता है और वह आनन्द विभोर हो उठता है । सत्य सती और सत्य का स्वभाव एक जैसा है। दोनों ही जीवन की उज्वलता को पसंद करते है । जैसे खुली छतवाले मकान में ही सूर्य का प्रकाश पड़ सकता है, और हवा का प्रवेश हो सकता है, उसी प्रकार आग्रह से मुक्त खुले हृदय में ही सत्य का दर्शन हो सकता है। सत्य- दूध जैसा उज्जवल, आकाश जैसा विशाल, जल जैसा शीतल और अमृत जैसा मधुर होता है । हीरा जैसे पृथ्वी के गर्भ में मिलता है, मोती जैसे सागर की गहराई से प्राप्त होता है, उसी प्रकार सत्य हृदय की गहराई से चिन्तन द्वारा प्राप्त किया जाता है। I ५२ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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