SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कर्म के विषय में इतना विस्तार से इसलिए कहा गया है कि श्री इन्द्रभूतिके अनुज अग्निभूति के मनमें कर्म के अस्तित्व को लेकर एक शंका थी श्री इन्द्रभूति की शंकाका जिस प्रकार प्रभुने निवारण किया था, उसी प्रकार अग्निभूति की शंकाका भी उन्होंने निवारण कर दिया. प्रभुके समवसरण में पहुँचते ही अग्निभूति का मन तो शान्त निरहंकार निर्वैर निर्विकार हो ही गया, परन्तु शंका का समाधान हो जाने पर किस प्रकार निःशंक भी हो गया था ? सो कल देखा जायगा. आज इतना ही पर्याप्त है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समझौता हार जीत मनुष्य के अहंकार का प्रतीक है, किन्तु समझौता और सन्धि यह उसकी बुद्धिमानी का चिन्ह है. हार-जीत का प्रश्न पशुओंमें भी खड़ा हो जाता है, किन्तु वहाँ समझौता जैसी कोई कल्पना नहीं हो सकती. दो बैल, भैसे, मैढे या कुत्ते परस्पर लड़ते-झगड़ते लहु-लुहान हो जाते हैं, दमतौड़ देते हैं, या मैदान छोड़कर भाग जाते हैं, किन्तु समझौता करके शान्ति से निबटने की बात उनके दिमाग में नहीं आती. समझौता मनुष्य को बुद्धि की उपज है जो मनुष्य युद्धर्मे, झगडे में समझौता की भाषा नहीं जानता उस मानव में और पशु में क्या अन्तर हैं... ? नेतृत्व के दो गुण एक इंजन जैसे पचासों डिब्बों को लेकर चल सकता है, वैसे ही एक दृढसंकल्पी व्यक्ति हजारों मनुष्यों को अपने पीछे लेकर आगे बढ़ सकता है. समाज का नेता, इंजन की तरह होता है, जो अपनी शक्ति पर भरोसा रखता है, किन्तु ध्यान सब का रखता है. कहीं भा गडबड़ हुई तो वह उसे सुधारे बिना आगे नहीं चलता. इंजन की भांति नेतृत्व में अपना साहस और अनुगामियों के प्रति वात्सल्य दोनों गुण अनिवार्य है. ४५ For Private And Personal Use Only alov
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy