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कहने का आशय यह है कि यदि आप स्वेच्छा से मरना भी चाहें तो मर । नहीं सकते. ज़हर भी बाजार में असली नहीं मिलेगा. जन्म और मृत्यु ये दोनों कार्य कर्म के अनुसार निश्चित समय पर होंगे. प्रभु महावीर को सर्वज्ञता प्राप्त होने से पूर्व साढे बारह वर्षों तक घोर कष्ट (परीषह और उपसर्ग) सहने पड़े थे. क्यों ? कर्म के कारण. श्रीराम को चौदह वर्ष तक वनवास भोगना पड़ा, पाण्डव जैसे महापराकमी पाँच पतियों की उपस्थितिमें द्रौपनीको चीरहरण के अपमान का कष्ट भरी सभामें भोगना पड़ा-पांडावों को बारह वर्ष बनवास और एक बर्ष अज्ञातवास में बिताना पड़ा-श्रीकृष्ण जैसे योगीश्वर को अन्त में पानी न मिल सकने के कारण प्यास की तीव्र वेदना कर अनुभव करते हुए ही . प्राण छोडने पड़े-श्रीकृष्ण के देखते-देखते ही पूरी द्वारका जलकर भस्म हो गई । इन सबका एक मात्र कारण था कर्म. सारी दुनियाको दहलाने वाले हिटलरको आत्महत्या करके स्टील बोक्सके अन्दर मरना पडा. । कहते हैं, हिटलर को बर्लिनमें सर्दी लग जाती थी तो चर्चिलको लन्दनमें छींक आ जाती थी. कैसा आतंक था उसका । सारी दुनिया उसके नामसे काँपती थी, किन्तु जब वह मरा तो उसके लिए कोई आँसू तक बहाने वाला कहीं न मिला। पुण्य के अस्त होने पर सबकी यही दशा हो जाती है धन दौलत भी पूर्व पुण्य के उदय से प्राप्त होती है. पुण्य और पाप - दोनों कार्मण वर्गणा के परमाणु है, पुद्गल हैं ऐसा मत सोचिये कि अरूपस्वरूप (अमूर्त) आत्मतत्त्व को मूर्त भौतिक पुद्गल प्रभावित कैसे करेंगे ? बीमारी के बाद आई कमजोरी में डाक्टर की सलाहसे लिये गये टॉनिक का असर होता है या नहीं ? ब्राम्ही के सेवन से दिमाग तरोताज़ा होता है या नहीं ? शराब या भाँग अथवा तम्बाकू के प्रयोग से नशा आता है या नहीं ज़रा सा पोटैशियम साइनाइड आपके चैतन्य को मूर्छित कर देता है खत्म कर देता है बिना बुलाये अकाल मृत्यु को उपस्थित कर देता है. एक ज़रा-सा जड़ परमाणु जब इतना असर रखता है, तब कार्मण वर्गणा के सूक्ष्मतम परमाणु आपके दिल. दिमाग पर, आपके मन-मस्तिष्क पर आपकी सोचने-समझने की शक्तिपर आपके जीवन पर, व्यवहार पर आपकी अन्तरात्मा पर कितना असर डालते होंगे? इसकी कल्पना की जा सकती है.
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