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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir grov ७/ (PD होगा. हाँ, यदि ये मेरे सन्देहका निवारण कर दें-मेरी शंका का समाधान कर दें मेरे प्रश्नका उत्तरदेदें-मेरे संशय का निराकरण कर दें तो अवश्य मैं इन्हें सर्वज्ञ मान लूँगा, अन्यथा नहीं. कहाभी है किसीने "यस्याग्रे न गलति संशयः समूलो नैवासौ क्वचिदपि पण्डितोक्ति मेति ॥" (जिसके सामने अपना संशय मूलसहित गल नहीं जाता, उसे कहीं भी "पण्डित" नहीं कहा जा सकता) श्री इन्द्रभूतिने मुँह खोला :- "जी हाँ । मेरे मनमें जीवके अस्तित्व के विषयमें वैसा ही सन्देह है, जैसा आपने प्रकट किया है. उसका निवारण आप कैसे करेंगे? है क्या कोई उत्तर आपके पास मेरे प्रश्न का ? यदि हो तो बताइये, अन्यथा मैं आपको सर्वज्ञ नहीं मान सकता।" प्रभुने कहा: "सर्वज्ञताका अस्तित्व किसी के मानने-न मानने पर निर्भर नहीं होता, इसलिए किसी के मानने मात्रसे कोई असर्वज्ञ सर्वज्ञ नहीं हो जाता और कोई सर्वज्ञ असर्वज्ञ नहीं हो जाता. जरूरत माननेकी नहीं जानने की है. वेदवाक्य ठीक है, परन्तु आप उनका जो अर्थ समझते हैं, वह ठीक नहीं है. ठीक अर्थ इस प्रकार है-विज्ञानधन इतिको छ ? विज्ञानघनो ज्ञानदर्शनोपयोगात्मकं विज्ञानम, तन्मयत्वादात्नापि विज्ञानधनः प्रतिप्रदेशं अनन्तज्ञानं पर्यायात्मकत्वात, सच विज्ञानघनः उपयोगात्मक: आत्मा कथंचिभूतेभ्यस्तद्वि-स्तद्विकारेभ्यो वा घटादिभ्यः समुत्तिष्ठते । उत्पद्यते इत्यर्थः । घटादिज्ञानपरिणतो हि जीवो घटादिभ्यः एव हेतुभूतेभ्यो भवति, घटादि झानपरिणामस्य घटादिवस्तुसापेक्षत्वात् । एवं चैतेभ्यः प्रमेयेभ्यो भूतेभ्यो घटादिवस्तुभ्यस्तत्तदुपयोगतया जीकः समुत्थाय समुत्पद्य तान्येवानुविनश्यति कोऽर्थ.? तस्मिन् घटादौ वस्तुनि नारे व्यवहिते या जीवो ७ पि तदुपयोगरूपतया नश्यति, अन्योपयोगरूपतया उत्पद्यते । सामान्यरूपतया वा अवतिष्ठते । ततश्च न प्रेत्य संज्ञास्ति कोऽर्थ ? न प्राक्तनी घटाधुपयोगरूपा संज्ञा अवतिष्ठते वर्तमानोपयोगेन तस्याः नाशित्वाद इति (विज्ञानघन का क्या अर्थ है ? ज्ञानदर्शनोपयोगात्मक जो विज्ञान है, वही विज्ञानघन है और उससे युक्त होनेके कारण आत्मा भी विज्ञानघन है. प्रत्येक प्रदेशमें पर्यायात्मक होने से ज्ञान अनन्त है, वह विज्ञानघन अर्थात् उपयोगात्मक आत्मा किसी तरह भूतों (पृथ्वी आदि) से अथवा उनके घटपटादि विकारों (वस्तुओं) से उत्पन्न होती है. घटादि-ज्ञान-परिणाम घटादिवस्तुसापेक्ष होने के कारण घटादि हेतुओंसे २४ NO For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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