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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin जीव घटादि ज्ञानमें परिणत हो जाता है. इस प्रकार इन भूतों (घटाति वस्तुओं) से उत्पन्न होकर जीव घटादि वस्तुओं के नष्ट होने पर या व्यवहित होने पर (छिप जाने पर अथवा सामने से हट जाने पर) तदुपयोगरूप से नष्ट हो जाता है-अन्योपयोगरूपसे उत्पन्न हो जाता है और सामान्यरूप से टिका (स्थिर) रहता है. उसके बाद न प्रेत्य संज्ञास्ति का क्या अर्थ है ? वर्तमान उपयोगसे नष्ट हो जाने के कारण पहले वाली घटादी उपयोग रूप संज्ञा नहीं रहती.)" इस प्रकार प्रभु के वचनोंसे संशय नष्ट हो जाने पर श्री इन्द्रभूतिजी अपने पाँच सौ छात्रों के परिवार सहित उनके शिष्य बन जाते है-श्रमणधर्म स्वीकार कर लेते हैं. प्रारंभमें श्री इन्द्रभूति जिस प्रकार धर्मशास्त्र के शब्दों में अटक गये, वैसे ही अधिकांश लोग अटक जाते है और आशय से भटक जाते है. सेठ मफतलाल एक बार किसी मेलेमें गये. रात का समय था. ध्यान नहीं रहा. चलते-चलते एक कुएँ में गिर पड़े, क्योंकि उस कुएँ पर पाल नहीं थी. कुएँ के भीतर पहुँच कर वे बहुत घबराये. बाहर निकलने के लिए उस में सीढ़ी नहीं थी. वे जोरोंसे चिल्लाये-"बचाओ, बचाओ, मुझे बाहर निकालो।" एक संन्यासीने चिल्लाहट सुन कर कहा: "भाई, भगवानने जो तुम्हें सजा दी है, उसे प्रेमसे भोग लो. कष्ट सहनेसे कर्म क्षय हो जायगा. संसारकी सेंट्रल जेल से छूट जाओगे, इसलिए बाहर आनेका प्रयास मत करो." ऐसा कह कर संन्यासी वहाँ से चले गये. फिर एक नेताजी पहुँचे. आवाज़ सुनकर बोले:- “सेठजी, कुएँ पर पाल न होने के कारण ही आप गिरे हैं, सवाल सिर्फ आपका नहीं है, भारतमें लाखों गाँव हैं और उनमें हजारों कुएँ ऐसे ही खतरनाक हैं, क्योंकि उनपर पाल नहीं है. मैं संसद के आगामी अधिवेशन में एक बिल रखूगा कि भारतभर में समस्त कुओं पर पाल बनवा दी जाय, जिससे भविष्यमें ऐसी दुर्घटनाएँ कहीं न हो. आप चिन्ता न करें." सेठजी बोलेः- "अरे, बिल जब पास होगा, तब होगा, किन्तु मुझे तो अभी मदद की ज़रूरत है, अन्यथा मैं मर जाऊँगा." नेताजी:- यह तो और भी अच्छा होगा. आपके मरने पर बिलमें जान आ जायगी और वह बहुत जल्दी पास होगा." २५ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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