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पूर्वपरिचयके इन्होंने नाम गोत्र सहित कैसे जान लिया ? यह आश्चर्य क्षण-भर ही टिक पाया, क्योंकि दूसरे क्षण यह विचार आया कि मेरा नाम तो सारी दुनिया प्रसिद्ध है, इसलिए उसे कौन नहीं जानता? सूर्य क्या कहीं छिपा रह सकता है? किसीके लिए अज्ञात हो सकता है? फिरभी इन्होंने गोत्रसहित नाम पुकारते हुए मधुर स्वरमें जो मेरी कुशल पूछी है, वह केवल मुझे प्रभावित करनेके ही लिए है. यह बात मैं न समझू - इतना अबोध मैं नहीं हूँ. ऐसी साधारण बातसे कोई किसीको सर्वज्ञ कैसे मान सकता है?
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अहंकारका नशा श्री इन्द्रभूतिके सिर पर सवार हो गया फिरसे अहंकार व्यक्ति को भटका देता है अपने लक्ष्यसे दूर ले जाता है अपनी मंजिल तक नहीं पहुँचने देता. अहंकार अन्धकार है. वह ज्ञानके प्रकाशसे जीवको वंचित कर देता है. ज्ञानके अभावमें कैसा संघर्ष होता है ? देखिये
आँखने कहा "मैं देखनेका काम करती हूँ, इसलिए मैं बड़ी हूँ. मेरे बिना सब लोग अन्धे कहलाते हैं."
कानने कहा :- "मैं सूननेका काम करता हूँ, इसलिए मैं बडा हैं. मेरे बिना सब लोग बहरे कहलाते हैं."
नाकने कहा:- "मैं सूंघनेका काम करती हूँ और चेहरेकी शोभा बढ़ाती हूँ, इसलिए मैं बड़ी हूँ. मेरे बिना लोग नकटे कहलाते हैं.
जीभने कहा :- "सारी इन्द्रियाँ एक-एक काम करती है, परन्तु मैं दो काम करती हूँ- खाने का भी और बोलने का भी । इसलिए मैं ही बड़ी हैं. मेरे बिना लोग गूंगे कहलाते हैं."
हाथोंने कहा- "सप्लाई और सिग्नेचर ये दो काम हम भी करते हैं इसलिए हम भी बड़े हैं. हमारे बिना लोग लूले कहे जाते हैं.
पाँवोंने कहा :- "शरीरकी इतनी बड़ी बिल्डिंग को तो हम ही सँभालते हैं. हम हड़ताल कर दें तो सारा काम रुक जाय हमारे ही दम पर यह बिल्डिंग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती-आती है. हममें से यदि एक भी टूट जाय तो लोग लँगड़े कहलाते हैं."
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