________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ON
कहलाती - जीवनभर असती ही कही जाती है, उसी प्रकार इस एक वादी को जीते बिना मुझे वास्तविक यश नहीं मिल सकेगा. इसे न जीतने पर मेरी शुभ्र कीर्ति कलंकित हो जायगी. जैसे एक ईंट खिसक जाने पर पूरी दीवार गिर जाती है - जरासा छिद्र रह जानेपर पूरी नौका डूब जाती है, वैसे ही एक वादी के रह जाने पर मेरा समस्त सुयश मिट्टीमें मिल जायगा, अत: मुझे ही जाना चाहिये."
शान्ति कहाँ है ? एक सम्राटने किसी युवक की अपूर्व वीरता पर प्रसन्न होकर उसे मन इच्छित वरदान मांगने को कहा। युवकने कहा-“मुझे धन नही चाहिए चूंकि मेरे पिताने बहुत धन मेरे लिए छोडा है। मुझे प्रतिष्ठा नहीं चाहिए चूंकि मेरी वीरता के कारण वह तो स्वयं प्राप्त हो रही है. मुझे सत्ता नहीं चाहिए चूंकि वह तो मेरे शासक के हाथों में सुरक्षित है ही । मुझे तो सिर्फ शान्ति चाहिए।" युवक की मांग पर सम्राट हतप्रभ रह गया. बोला "वह तो मेरे पास भी नहीं है" फिर भी अपना वचन पूरा करने के लिए उसने अपने कुलदेवता को याद किया। देवता ने कहा सम्राट । मैं तो भौतिक सिद्धियों का स्वामि हूं शान्ति तो आत्मिक सिद्धि है, वह मेरे पास कहां है ? सम्राट के साथ युवक को लेकर कुलदेवता एक योगी के पास गया और युवक की मांग रखी। योगी ने मुस्कराते हुए कहा "मुग्ध प्राणियों । शान्ति कहीं बाहर मिलती है ? जहां से अशांति पैदा होती है वहीं से शान्ति प्राप्त होगी. बाहर नहीं भीतर देखो। तुम्हारे हृदय में ही शांति का मूल है, वह दी नहीं जाती, प्राप्त की जाती है और प्राप्त भी क्या सिर्फ अनावृत की जाती है। युवक सम्राट और कुल देवता एक साथ योगीके चरणों में विनत हुए... और शान्ति का बोधसूत्र पाकर अपने अपने स्थान की ओर चल दिए।
.
.
-
-
For Private And Personal Use Only