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। बड़े-बड़े दिग्गज पण्डितोको पराजित करनेवाले मुझ महापण्डितके सामने
यह महावीर है किस खेतकी मली? बडे-बड़े वृक्षोंको उखाड फेंकनेवाले प्रचंड प्रभंजनके सामने रुई की पौनी कहाँ लगती है ? जिस नदी की बाढ में हाथी बह गये, वहाँ चींटी की क्या बिसात ? वर्षों पहले मैं दिग्विजय कर चुका हूँ उसके बाद तो कोई पण्डित ही सामने नहीं आया. मेरे सामने वादियोंका अकाल ही पड़ गया । बहुत वर्षोंसे जीभ पर खाज चल रही है कि कोई वादी मिले तो अपनी खाज मिटाने का मौका मिले. आज यह मौका बड़ी मुश्किलसे मिला है. इसका लाभ उठा लूँ. चलूँ. इस प्रकार श्री इन्द्रभूतिको वाद करने के लिए चलनेको तत्पर देखकर उनके अनुज अग्निभूतिने निवेदन किया:- "भाई साहब । कीट को पकडने के लिए कटक (सैन्य) की क्या जरूरत ? अलसिये को मारने के लिए गरुड़ की क्या जरूरत ? तिनके को काटने के लिए कुठार... (कुल्हाडे) की क्या जरूरत ? कमलको उखाडने के लिए हाथी की क्या जरूरत ? उसी प्रकार उस तथाकथित सर्वज्ञको जीतने के लिए आपके पधारने की क्या जरूरत ? मुझे आज्ञा दीजिये. मैं अभी उसे जीतकर आ
जाता हूँ."
यह सुनकर श्री इन्द्रभूतिने अग्निभूति से कहा:- "भैया । बिल्कुल ठीक कहा तुमने. सच पूछा जाय तो इसे जीतने के लिए तुम्हें भेजने की भी जरूरत नहीं क्योंकि इसे तो मेरे पाँच सौ शिष्यों में जो सबसे छोटा शिष्य है, वह भी जीत सकता है, फिर भी मुझसे रहा नहीं जा रहा है. शल्य छोटा हो तो भी वह परेशान करता है, इसलिए मैं खुद ही जाना चाहता हूँ, यों तो मैने सब वादियों पर विजय प्राप्त कर ली है, परन्तु जैसे हाथी के मुँहमें से कोई अन्नकण गिरकर रह जाय-मूंग उबालते समय कोई कोरडू रह जाय- समुद्रपान करते समय अगस्त्य ऋषि के सामने कोई जलबिन्दु रह जाय-चनों को भूनते समय कोई चना भाड़ से उछलकर रह जाय-फल काटते हुए कोई छिलका रह जाय अथवा धानी में पिलते तिलों में से कोई तिल पड़ा रह जाय, वैसे ही यह एक वादी रह गया है. इसे जीते बिना मैं सर्वविजेता नहीं कहला सकता. जैसे पतिव्रता पत्नी यदि एक बार भी. अपने शीलव्रतसे भ्रष्ट हो जाय तो वह शीलवती नहीं
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