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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कौए भले ही नीमके फलों पर (निबोरियों पर ) लट्टू हो जायँ, परन्तु आम तो आम ही रहेगा. आमका महत्त्व उससे कम नहीं हो जाता. आम फलों का राजा होता है, वैसे ही मैं पंण्डितोंका राजा हूँ मैंने बडे-बडे पंण्डितोंसे शास्त्रार्थ किया है और सर्वत्र विजय प्राप्त की है. संसारमें ऐसा कौन पंडित है, जो मुझसे वाद करनेकी शक्ति रखता हो लाटा दूरगताः प्रवादिनिवहा मौनं श्रिता मालवा: मूकत्वं मगधागता गतमदा गर्जन्तिनो गुर्जराः । काश्मीराः प्रणताः पलायनपरा जातास्तिलडो दभवाः विश्वेचापि स नास्ति यो हि कुरुते वादं मया साम्प्रतम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाट देशके वादियोंका समूह हारके डरसे दूर चला गया. मालवदेश के वादियोंने मौन धारण कर लिया. मगध देशके वादियोंने बोलना ही छोड दिया. घमण्ड छोडकर गुजरातके वादियोंने गरजना बन्द कर दिया. कश्मीर देशके पण्डित तो मेरे पाँवों में झुक गये. तैलंग देशके पण्डित तो मेरा नाम सुन कर ही भाग गये अधिक क्या कहूँ ? आज इस दुनियामें ऐसा कोई पंडित नहीं है, जो मुझसे वाद कर सके. ऐसी स्थिति में यह दूसरा सर्वज्ञ कहाँ से आ गया ? मुझे तो यह कोई जादूगर मालूम होता है, जिसने देवोंको भी भ्रम में डालकर अपनी ओर आकर्षितकर लिया है. इस प्रकार चिन्तन चल ही रहा था कि उधरसे वन्दन करके लौटते हुए देवोंमें से किसी एक से इन्द्रभूतिने पूछा:- "क्यों भाई देख आये उस तथाकथित सर्वज्ञ को ? कैसा रूप है उसका ? कैसी शक्ल है ? कैसी अक्ल है ? देव होकर भी उसके इन्द्रजाल को भेद न सके ? शब्द जाल में फँसकर उसे सर्वज्ञ मानने लगे ? कुछ तो कहा उसके बारे में ? ४ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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