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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि अभिमान छोड़कर सब पण्डित अपनी-अपनी शंका एक-दूसरे के सामने प्रकट कर देते तो सबका एक-दूसरेके द्वारा समाधान हो जात क्यों कि सबकी शंकाएँ अलग-अलग थीं जो शंका एक को थी, वह । दूसरे को नहीं थी, परन्तु अभिमान सब पर ऐसा छाया हुआ था कि सब अपनी शंकाओंके विषयमें मौन साधे रहे. पावापुरी में जब इस महायज्ञ का आयोजन हो रहा था, उसी समय वहाँ एक और सर्वज्ञ प्रभु महावीर का पदार्पण हुआ. उनके लिए समवसरणकी रचना की गई थी. प्रभुको वन्दन करने और उनका प्रवचन सुनने के लिए दूरसे आते हुए वैमानिक देवोंको देखकर प्रधान पण्डित इन्द्रभूति भ्रमसे यह मानकर हर्षित होने लगा कि यह हमारे यज्ञकी महिमा है, जिसमें यज्ञ-भाग ग्रहण करने के लिए प्रत्यक्ष देवगणका शुभागमन हो रहा है. यह भ्रम तब टूटा, जब आगन्तुक देव यज्ञमण्डप छोडकर आगे निकल गये. श्री इन्द्रभूति विचारमें पड़ गया कि यह क्या बात हुई ? ये भूल तो नहीं गये ? यज्ञस्थल तो यही है न ? क्या इनको पता नहीं है ? कितनी दूर-दूर से लोग इस यज्ञमें सम्मिलित होने के लिए आये हैं। हम ग्यारह विद्वानोंके चवालीस सौ शिष्यों के अतिरिक्त शंकर, शिवंकर, शुभंकर, सीमंकर क्षेमंकर, महेश्वर, सोमेश्वर, धनेश्वर दिनेश्वर, गणेश्वर, गंगाधर, गयाधर, विद्याधर, महीधर, श्रीधर, विद्यापति, गणपति, प्रजापति, उमापति श्रीपति, हरिशर्मा, देवशर्मा, सोमशर्मा, विष्णुशर्मा, शिवशर्मा, नीलकण्ठ, वैकुण्ठ, श्रीकण्ठ, कालकण्ठ, रक्तकण्ठ, जगन्नाथ सोमनाथ, विश्वनाथ लोकनाथ, दीनानाथ, श्यामदास, हरिदास, देवीदास, कृष्णदास, रामदास, शिवराम, देवराम, रघुराम, हरिराम, गोविन्दराम आदि हजारों ब्राह्मण यह उपस्थित है-यज्ञ मण्डपमें इतनी चहल-पहल है, फिरभी क्या यह सब इन्हें दिखाई नहीं दिया ? क्या इनके दिव्य ज्ञानका दिवाला आउट हो गया है ? साधारण मनुष्य तो अल्पज्ञ होनेसे भूल कर सकता है, परन्तु ये तो अवधिज्ञानी देव है. इनसे ऐसी भूल कैसे हो रही है ? इतनेमें जाने वाले देवोंमें से एक देव दूसरेसे बोला:- "जरा जल्दी चलो.. चरम तीर्थंकर देव का समवसरण है. उन्हें वन्दन करनेमें हम पीछे न रह जायँ । वे सर्वज्ञ देव हैं, उनका पूरा प्रवचन हमें सुनना है -- ऐसा न हो कि उनकी देशना का कोई शब्द सुनने से रह जाय.' 2 For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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