________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्पादकीय इस पुस्तक में जिन ग्यारह गणधरों का उल्लेख हुआ है, उनमें जो समानताएँ थीं, वे इस प्रकार है:
१. सब वेदोंके विशेषज्ञ महान पण्डित थे. २. सब सोमिल ब्राह्मण द्वारा आयोजित यज्ञ में आमन्त्रित होकर - पावापुरीमें पधारे थे. ३. सबकी शंकाएँ परस्पर विरुद्धवेदवाक्यों पर आधारित थीं. ४. सबके हृदयमें केवल एक-एक शंका ही थी. ५. सबकी शंकाओंका समाधान प्रभुने वेदवाक्योंका वास्तविकअर्थ बताकर
किया. ६. समाधान होते ही अपनी-अपनी विद्वत्ताका अहंकार त्याग कर सबने
प्रभुको आत्मसमपर्ण कर दिया. ७. सबको प्रभुसे त्रिपदी का ज्ञान मिला ८. त्रिपदीका ज्ञान पाकर सबने द्वादशांगी की रचना की. ९. शब्दों में भिन्नता होते हुए भी सबकी द्वादशांगियोंके भावोंमें अभिन्नता
थी- सबका आशय एक था- तात्पर्य समान था. १०. सबको प्रभुने गणधर पद पर प्रतिष्ठित किया. ११. अपने छात्र समुदायके साथ ही सबने प्रव्रज्या अंगीकार की. १२. संयम और तपस्याकी साधनाके द्वारा केवलज्ञानी बनकर सबसे मोक्ष ५. प्राप्त किया.
इतनी समान्ताओंके होते हुए भी उनमें जो असमानताएँ थीं, वे इस प्रकार
१. सबकी शंकाएँ भिन्न-भिन्न थी. २. सबकी छात्रसंख्या भिन्न-भिन्न थी, ३. समवसरणमें सब अलग-अलग पहुँचे. ४. सबका नाम अलग-अलग था. इसी प्रकार सबकी गोत्र, अवस्था और
देह अलग-अलग थी. द्वादशांगियों (बाहर अंगसूत्रों) की रचना की. ५. सबने अलग-अलग समयमें केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया.
For Private And Personal Use Only