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प्रकाशकीय प्रातः स्मरणीय बालब्रम्हचारी, सुविचारक, सम्मेतशिखर तीर्थोद्धारक, कुशल वकता, शास्त्रमर्मज्ञ, सद्गुरुदेव जैनाचार्य परम पूज्य श्रीमत् पद्मसागर सूरिश्वरजी महाराज साहब के मुखार विन्द से निःसत बारह सुमधुर सुन्दर रोचक ज्ञान वर्धक तत्त्वबोधक आत्मबोधक प्रवचनों का संकलन ज्योतिर्विद विद्वान मुनिराज श्री अरुणोदय सागरजी म.सा. के पट्टधर साहित्य प्रेमि विद्वाने मुनिराजश्री देवेन्द्रसागरजी म.सा. की प्रेरणासे श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा के प्रांगण में नवनिर्मित गगनचुंबि जिनालय की प्राणप्रतिष्ठा के सुअवसर पर 'पुस्तक' प्रकाशित करते हुए आज हमें अत्यन्त हर्षका अनुभव हो रहा है। पुस्तक का शीर्षक है- 'संशय सब दूर भये (गणधरवाद) क्योंकि इसमें सर्वज्ञ प्रभु महावीर के साथ इन्द्रभूति आदि महापण्डितों की जो महत्त्व पूर्ण चर्चाएँ हुई थी उनका विस्तृत विवरण है प्रभु के विचार से प्रभावित होकर अपनी अपनी शंकाओं का समाधान पाकर उन सभी महापण्डितोंने शिष्यता स्वीकार कर ली थी. प्रभुने उन्हें 'गणधरपद्' से विभूषित किया
था.
कम से कम समय में सुयोग्यता पूर्वक इस की पाण्डुलिपि तैयार करनेवाले पण्डित श्री परमार्थाचार्य जी के तथा मुद्रण कार्य में नवनितलाल अन्ड कुं के श्री मनोज आर. गांधी के सहयोग को हम कैसे भूल सके ? अतः हम उनके भी आभारी है। उन उदार सज्जनों के भी हम अत्यन्त आभारी हैं, जो समय - समय पर हमें आर्थिक सहयोग देते रहे आज्ञा ही नही बलकी विश्वास है कि साहित्यप्रेमी पू. मुनिराजश्री देवेन्द्रसागरजी म.सा. की प्रेरणा से पूर्व प्रकाशित प्रतिबोध मोक्ष मार्गमें बीस कदम, जीवन द्रष्टि, मित्तिमें सव्वभूएसु आदि पुस्तकों की तरह इस पुस्तक का भी समाज में स्वागत होगा.
ट्रस्टीगण (अरुणोदय फाउन्डेशन)
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