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विषय-कषाय के त्याग से आत्मा में प्रचण्ड शक्ति उत्पन्न होती है । कोमल अंगोवाली महासती सीता ने महान शक्ति शाली रावण का मकाबला कैसे किया था ? राख की ढेरियों के समान हजारों नारियों से एक तिनक की तरह सुशीला स्त्री अधिक श्रेष्ठ है ।
जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए चौकन्ना रहना होगा । हम जानते हैं कि एक छोटा-सा छेद नाव को डुबो देता है एक छोटी सी चिनगारी पूरे गोडाउन को ही नहीं. गाँव को जला देती है । इसी प्रकार एक छोटी सी भूल मानव को विराट से वामन बना सकती है ।
छोटा सा दाग भी सन्दर पोशाक की शोभा को नष्ट कर देता है । उसी प्रकार छोटा-सा दोष भी हमारी प्रतिष्ठा की मिट्टी में मिला सकता है । आचरण की शुद्धि ही जीवन की शोभा है- सभ्यता है. भड़कीली पोशाक नहीं ।
स्वामी विवेकानन्द की पोशाक देखकर हँसने वाली एक अमेरिकन महिला से उन्होंने कहा था :- “बहिन ! में जिस दश (भारत) का निवासी हूँ, उस में सभ्यता का निर्माता चरित्रा होता है, दर्जी नहीं ।”
एसा सभ्य चरिसम्पन्न विनीत व्यक्ति जहाँ भी जाता है, वहाँ सन्मान पाता है । सद्गुणों से ही हमारी आत्मा सुसंस्कत होती है । यदि हम देवलोक के स्वरूप पर विचार करें तो हमें त्याग का महत्त्व समझमें आ सकता है ।
पहा । बारह देवलोक हैं । फिर नौ ग्रेनेयक और पाँच अनुत्तर विमान। सबसे ऊपर है - सिद्धशिला ।।
पहले और दूसरे देवलोक के देव देवियों के साथ पाँचो इन्द्रियों के विषयसुग्व का भोग करते हैं । तीसरे और चौथे देवलोक के देव स्पर्शमात्र से भोगसुख का अनुभव करते हैं । पाँचवें और छठे स्वर्ग क देव देवियों के रूप को देखकर ही सन्तुष्ट हो जाते हैं । सातवें और आठवे स्वर्ग क देव दत्रियों के संगीत को सुनकर ही सम्पूर्ण भोगसुख पा जाते हैं । नौवें, दसवं ग्यारहवें और बारहवें स्वर्गो के देव देवियों क शरीर का कवल स्मरण करक ही रोमांचित हो जाते हैं ।
बारहवं रवर्ग से ऊपर के देवों की कामना शान्त हो जाती है । ग्रेवेयक दव ज्ञानियों की सक्तियोंपर मनन करते हैं और अनुत्तर विमान वासी ज्ञानियों के वचनो पर अनुराग रखते हैं और यह अनुराग ही उनकी मुक्ति में बाधक होता है ।
इस वर्णन से सिद्ध होता है कि ज्यों-ज्यों कामभाग की लालसा शान्त होती जाती है और ज्ञानियों के उपदेश पर श्रद्धा पदा होती जाती है, त्यों
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