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धर्म और विज्ञान
अनात्मवादी विज्ञान से हमें कोई प्रयोजन नहीं, हमें तो आत्यवादी विज्ञान और धर्म का मिलन करना हैं । धर्म से रहित विज्ञान ना उस बन्दर जैसा है, जिसने सोये हुए राजा की गर्दन में बैठी हुई मरवी को उड़ाने के लिए तलवार का प्रहार करके राजा के सिर को धड़ से अलग कर दिया था !
भौतिक सामग्री जटा कर सुविधा प्रदान करना एक बात है और संहारक सामग्री का निर्माण करके विनाश को निमन्त्रिात करना दूसरी । मल क पाइप में कचरा भरा हो तो जल का प्रवाह रुक जाता है उसी प्रकार मन में स्वार्थ भरा हो तो परमाणु बम जैसे घातक अस्त्रों का आविष्कार और निर्माण होने लगता है तथा उससे वास्तविक विकास रूक जाता है ।
जीवन की आवश्यकताएँ पूर्ण करने के लिए धन है, परन्तु लागो में आवश्यकता से अधिक धन एकत्रा करने की मनावृति ने जन्म ले लिया है । प्रभु ने परिग्रह को पाप के समान त्याज्य माना था; किन्त उनक अनुयायी अधिक से अधिक परिग्रह में फंसते जा रहे हैं ।
हर एक परिग्रही अपने से बड़े परिग्रही की ओर देखकर मन में असन्तोष की आग भड़का लेता है और अपने से छोटे परिग्रही को दरखकर अहंकार के हाथी पर सवार हो जाता है । दोनों ही स्थितियों में अमृतमय जीवन विषमय बन जाता है ।
अपने शरीर को मनुष्य सजाता है, परन्तु चमड़ी क भीतर वगा है ? इस बात का विचार नहीं करता :
रुदिरत्रिधातुमजामेदोमासास्थिसहतिर्देहः । स बहिस्त्वचा पिनद्ध
स्तस्मान्नो भक्ष्यते काकैः ।। (रूधिर, त्रिधात, मजा, मेद, मांस और हड्डियों का संग्रह । शरीर ! वह बाहर चमड़ी से ढका हुआ है; इसीलिए उस कौए नहीं खात !)
किसी भी फक्ट्री को देखिये । उसमें जिस रा मटारयल का उपयोग होता है, वह बहुत खराब होता है, किन्तु प्रोडकशन (उत्पादन) सन्दर होता है; परन्तु दूसरी ओर शरीर है, जो शेठ आत्माराम एण्ड कंपनी लिमिटेड
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