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आभमान कवल अपने लिए पातक है; परन्तु क्रोध दूसरों के लिए भी मानक है । क्रोधी खद जलता है और दूसरों को भी जलाता है । शिक्षा प्राप्त करने के लिए जिस बुद्धि की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, क्रोध उसी को नष्ट कर देता है ।
तीसरा बाधक तत्व है - प्रमाद । यह मानव को पंगु बनाता है - श्रम से दूर रखता है - रफ़र्ति रहित मर्दा बना देता है । प्रमादी व्यक्ति आलस्य को आराम समझता है - उसी में सुख का अनुभव करता है । यह दोहा उसक लिए आदर्श होता हैं :
अजगर करे न चाकरी पछी करे न काम । दास मलूका कह गये सबक दाता राम ।।
प्रमादी परमवापक्षी होता हे - पराधीन होता है- उसका व्यक्तित्व नष्ट हो जाता है- उसक लिए प्रगति का द्वारा बन्द हो जाता है । प्रमाद ऐसा नशा है, जिसमें व्यक्ति स्वयं अपना भान भूल जाता है; फिर शिक्षा को भला कसे याद रखा सकता है ?
चौ या बाधक है .- रोग । शारीरिक हो या मानसिक दोनों प्रकार का रोग भयकर होता है । शिक्षा प्राप्त करने के लिए चित्त की एकाग्रता जरूरी है; किन्त जब तक राग मिट नहीं जाता, तब तक चित्त एकाग्र नहीं हो सकता । सारा ध्यान रोग खींच लेता है; इसलिए अध्ययन की ओर ध्यान केन्द्रित नहीं हो सकता ।
शिक्षा के लिए अन्तिम (पाँचवा) बाधक होता है- आलस्य । इस से मनष्य निकम्मा हो जाता है । आलसी कोई भी काम करना नहीं चाहता । अपना काम वह दूसरों पर डाल देता है; भले ही दूसरे लोग काम बिगाइ । बिगड़े काम से होने वाली हानि भी वह सह लेता हा परन्तु स्वयं अपने हाथ से कुछ भी करना नहीं चाहता । आलस्य ऐसा शशु है, जो अपन शरीर के भीतर रहता है :- घपलस्यं हि मनुष्याणां, शरीरस्थो महारिपः । शिक्षार्थी इस महान शत्रु का नाश करक ही सफलता पाता ।
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