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यदि अपकारी पर क्रोध करना शूरता है तो क्रोध ही सबसे बड़ा अपकारी
"अपकारिषु कोपश्चेत्
कोपे कोप: कथं न ते ?" (यदि तूं अपकारियों पर क्रोध करता है तो क्रोध पर क्रोध क्यों नहीं करता ?) शरता संस्कारों का परिणाम है । संस्कार आते हैं- सुयोग्य शिक्षण से ।
• आज क शिक्षण से चरिता गायब हो गया है, विनय का नाश हो गया है और विवेक का विलय हो गया है । यही कारण है कि आज विवेकान्द, वीरचन्द गाँधी आदि क समान प्रतिभाशाली व्यक्ति दिखाई नहीं देते, जिन्होंने विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति की धाक जमाई थी ।
लॉर्ड कर्जन ने बंगालयूनिवर्सिटी के उपकुलपति सर आशुतोष मुखर्जी से, जब विशिष्ट शिक्षा पाने क लिए कम्ब्रिज जाने का आदेश दिया तो, उत्तर पाया कि इस आदेश का पालन मेरी माँ की इच्छा पर निर्भर है । ___ मा के इन्कार करने पर दूसर दिन अपना त्यागपत्र सामने रखकर लार्ड कर्जन से कहा :- “मरी माँ का आदेश न होनेसे में विदेश नहीं जा सकँगा । यदि न जाने से आप रुष्ट हों तो मेरे त्याग पत्रा को स्वीकृत कर लें ।" ___ यह सुनते ही मुखर्जी को छाती से लगा कर कर्जन बोले :- “आज मुझे दर्शन हुए है' - भारतीय संस्कृति की जीवित प्रतिमा के ! धन्य हैं आप !"
ऐसे मातृभक्त मुखर्जी आज क शिक्षण से उत्पन्न नहीं हो पा रहे हैं । यह केवल भारत की नहीं, पूरे विश्वकी समस्या है। स्कूल-कॉलेज, सिनेमा टॉकीज और होटल के अतिरिक्त और कोई स्थान आज का छात्र नहीं जानता। धर्म उसंक लिए एलर्जिक है- रोग है। उसकी स्थिति दयनीय है। “ज्ञानस्य फलं विरति:" (ज्ञान का फल पाप का त्याग, पापों से अटकना है)
इस बात को वह भूल गया है। उसमे हेमचन्द्रचार्यजी अथवा शंकराचार्य बनने की आशा नहीं की जा सकती !
एक शालानिरीक्षक जो आठवीं कक्षा का निरीक्षण करके नौवीं में पहुँचे । जिसने आठवीं में सन्तोषजनक उत्तर दिया था, उसी छात्र को नौवीं में देखकर निरीक्षक ने पूछा :- “तुम यहाँ कैसे ?"
छात्र ने कहा :- “मेरा मित्र आज यहाँ अनुपस्थित है । में उसके बदले आ गया हूँ।"
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